सरदार वल्लभ भाई पटेल जीवनी - Biography of sardar vallabhbhai patel in Hindi
सरदार वल्लभ भाई पटेल जीवनी - Biography of sardar vallabhbhai patel in Hindi : वल्लभभाई पटेल , पूर्ण रूप से वल्लभभाई झावेरभाई पटेल , उपनाम सरदार पटेल , (जन्म 31 अक्टूबर, 1875, नडियाद , गुजरात , भारत - 15 दिसंबर, 1950 को मृत्यु हो गई, बॉम्बे [अब मुंबई]), भारतीय बैरिस्टर और राजनेता, भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं में से एक । 1947 के बाद भारतीय स्वतंत्रता के पहले तीन वर्षों के दौरान, उन्होंने उप प्रधान मंत्री , गृह मामलों के मंत्री, सूचना मंत्री और राज्यों के मंत्री के रूप में कार्य किया।
नाम Vallabhbhai Jhaverbhai Patel • Sardār Patel जन्म 31 अक्टूबर 1875 • नडियाद • भारत मृत्यु 15 दिसंबर 1950 (उम्र 75) • मुंबई • भारत राजनीतिक संबद्धता भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेससरदार वल्लभ भाई पटेल जीवनी - Biography of sardar vallabhbhai patel in Hindi
सरदार वल्लभ भाई पटेल (31 अक्टूबर, 1875 - 15 दिसम्बर, 1950) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने। बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहाँ की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष भी कहा जाता है।
आरम्भिक जीवन :
भारत के लौह-पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को नादिद ग्राम में हुआ था। उनके पिता झवेरभाई पटेल एक साधारण किसान और माता लाड बाई एक साधारण महिला थी। वे झवेरभाई पटेल एवं लाडबा देवी की चौथी संतान थे। सोमाभाई, नरसीभाई और विट्टलभाई उनके अग्रज थे।
बचपन से ही पटेल कड़ी महेनत करते आए थे, बचपन से ही वे परिश्रमी थे। खेती में बचपन से ही पटेल अपने पिता की सहायता करते थे और पेटलाद की एन.के. हाई स्कूल में पढ़ते थे। उन्होंने 1896 में अपनी हाई-स्कूल परीक्षा पास की। स्कूल के दिनों से ही वे हुशार और विद्वान थे।
घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद उनके पिता ने उन्हें कॉलेज भेजने का निर्णय लिया था लेकिन वल्लभभाई ने कॉलेज जाने से इंकार कर दिया था। इसके बाद लगभग तीन साल तक वल्लभभाई घर पर ही थे और कठिन महेनत करके जिले के नेता की परीक्षा पास करने की तैयारी कर रहे थे, और वह परीक्षा उन्होंने अच्छे गुणों से पास भी की थी। बाद में उन्होनें बड़ी मेहनत से बॅरिस्टरकी उपाधी संपादन कर ली। और साथ ही में देशसेवा में कार्य करने लगे।
वल्लभभाई पटेल एक भारतीय बैरिस्टर और राजनेता थे, और भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के मुख्य नेताओ में से एक थे और साथ ही भारतीय गणराज्य के संस्थापक जनको में से एक थे। वे एक सामाजिक कार्यकर्ता थे जिन्होंने देश की आज़ादी के लिये कड़ा संघर्ष किया था और देश को एकता के सूत्र में बांधने में उन्होंने काफी योगदान दिया था, उन्होंने भारत को एकता के सूत्र में बांधने और आज़ाद बनाने का सपना देखा था। भारत और दूसरी जगहों पर वे सरदार के नाम से भी जाने जाते है।
राजनीतिक जीवन :
गृहमंत्री के रूप में सरदार पटेल पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं आईसीएस का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं आईएएस बनाया। सरदार बल्लभ भाई पटेल को मरणोपरान्त वर्ष 1991 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था यह अवार्ड उनके पौत्र विपिनभाई पटेल द्वारा स्वीकार किया गया। सरदार पटेल जी के सम्मान में अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण सरदार वल्लभभाई पटेल अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल की 137वीं जयंती के अवसर पर 31 अक्टूबर, 2013 को गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा ज़िले में सरदार पटेल के स्मारक का शिलान्यास किया।इसका नाम 'एकता की मूर्ति' (स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी) रखा गया है। सरदार पटेल की यादों को ताजा रखने के लिए अहमदाबाद के शाहीबाग में सरदार बल्लभ भाई पटेल मेमोरिल सोसाइटी में सरदार पटेल का थ्री डी संग्राहालय तैयार किया गया है।
नवम्बर 1917 में पहली बार गाँधी जी से सीधे संपर्क में आये। 1918 में अहमदाबाद जिले में अकाल राहत का बहुत व्यवस्थित ढंग से प्रबंधन किया अहमदाबाद Municipal Board से गुजरात सभा को अच्छी धनराशी मंजूर करवाई जिससे इंफ्लुएंजा जैसी महामारी से निपटने के लिए एक अस्थाई हॉस्पिटल स्थापित किया। 1918 में ही सरकार द्वारा अकाल प्रभावित खेड़ा जिले में वसूले जा रहे लैंड रेवेन्यु के विरुद्ध “No-Tax” आन्दोलन का सफल नेतृत्व कर वसूली को माफ़ करवाया. गुजरात सभा को 1919 में गुजरात सूबे की काग्रेस कमिटी में परिवर्तित कर दिया जिसके सचिव पटेल तथा अध्यक्ष महात्मा गाँधी बने।
1920 के असहयोग आन्दोलन में सरदार पटेल ने स्वदेशी खादी, धोती, कुर्ता और चप्पल अपनाये तथा विदेशी कपड़ो की होली जलाई। Ahmedabad Municipal चुनाव में सभी ओपन सीटों पर जीत दर्ज की. तिलक स्वराज फण्ड के लिए 10 लाख रुपये एकत्रित किये. केवल गुजरात में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ३ लाख सदस्य बनाये. गांधी से मिलकर गुजरात विद्यापीठ स्थापित करने का निर्णय किया। 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 36 वें अहमदाबाद अधिवाशन की स्वागत समिति के अध्यक्ष बने। वे गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमिटी के पहले अध्यक्ष बने।
एक वकील के रूप में सरदार पटेल ने कमज़ोर मुक़दमे को सटीकता से प्रस्तुत करके और पुलिस के गवाहों तथा अंग्रेज़ न्यायाधीशों को चुनौती देकर विशेष स्थान अर्जित किया। 1908 में पटेल की पत्नी की मृत्यु हो गई। उस समय उनके एक पुत्र और एक पुत्री थी। इसके बाद उन्होंने विधुर जीवन व्यतीत किया। वक़ालत के पेशे में तरक़्क़ी करने के लिए कृतसंकल्प पटेल ने मिड्ल टेंपल के अध्ययन के लिए अगस्त, 1910 में लंदन की यात्रा की। वहाँ उन्होंने मनोयोग से अध्ययन किया और अंतिम परीक्षा में उच्च प्रतिष्ठा के साथ उत्तीर्ण हुए।
फ़रवरी, 1913 में भारत लौटकर सरदार पटेल अहमदाबाद में बस गए और तेज़ी से उन्नति करते हुए अहमदाबाद अधिवक्ता बार में अपराध क़ानून के अग्रणी बैरिस्टर बन गए। गम्भीर और शालीन पटेल अपने उच्च स्तरीय तौर-तरीक़ों और चुस्त, अंग्रेज़ी पहनावे के लिए जाने जाते थे। वह अहमदाबाद के फ़ैशनपरस्त गुजरात क्लब में ब्रिज के चैंपियन होने के कारण भी विख्यात थे। 1917 तक वे भारत की राजनीतिक गतिविधियों के प्रति उदासीन रहे।
सरदार पटेल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई बार जेल के अंदर-बाहर हुए, हालांकि जिस चीज के लिए इतिहासकार हमेशा सरदार वल्लभ भाई पटेल के बारे में जानने के लिए इच्छुक रहते हैं, वह थी उनकी और जवाहरलाल नेहरू की प्रतिस्पर्द्धा। सब जानते हैं कि 1929 के लाहौर अधिवेशन में सरदार पटेल ही गाँधी जी के बाद दूसरे सबसे प्रबल दावेदार थे, किन्तु मुस्लिमों के प्रति सरदार पटेल की हठधर्मिता की वजह से गाँधीजी ने उनसे उनका नाम वापस दिलवा दिया।
1945-1946 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए भी पटेल एक प्रमुख उम्मीदवार थे, लेकिन इस बार भी गाँधीजी के नेहरू प्रेम ने उन्हें अध्यक्ष नहीं बनने दिया। कई इतिहासकार यहाँ तक मानते हैं कि यदि सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनने दिया गया होता तो चीन औरपाकिस्तान के युद्ध में भारत को पूर्ण विजय मिलती, परंतु गाँधीजी के जगजाहिर नेहरू प्रेम ने उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया।
गाँधीजी के प्रति श्रद्धा :
महात्मा गाँधी के प्रति सरदार पटेल की अटूट श्रद्धा थी। गाँधीजी की हत्या से कुछ क्षण पहले निजी रूप से उनसे बात करने वाले पटेल अंतिम व्यक्ति थे। उन्होंने सुरक्षा में चूक को गृह मंत्री होने के नाते अपनी ग़लती माना। उनकी हत्या के सदमे से वे उबर नहीं पाये। गाँधीजी की मृत्यु के दो महीने के भीतर ही पटेल को दिल का दौरा पड़ा था।
नेहरूजी से संबंध :
जवाहरलाल नेहरू कश्मीरी ब्राह्मण थे, जबकि सरदार पटेल गुजरात के कृषक समुदाय से ताल्लुक रखते थे। दोनों ही गाँधीजी के निकट थे। नेहरू समाजवादी विचारों से प्रेरित थे। पटेल बिजनेस के प्रति नरम रुख रखने वाले खांटी हिन्दू थे। नेहरू से उनके सम्बंध मधुर थे, लेकिन कई मसलों पर दोनों के मध्य मतभेद भी थे। कश्मीर के मसले पर दोनों के विचार भिन्न थे। कश्मीर मसले पर संयुक्त राष्ट्र को मध्यस्थ बनाने के सवाल पर पटेल ने नेहरू का कड़ा विरोध किया था।
कश्मीर समस्या को सरदर्द मानते हुए वे भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय आधार पर मामले को निपटाना चाहते थे। इस मसले पर विदेशी हस्तक्षेप के वे ख़िलाफ़ थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के चुनाव के पच्चीस वर्ष बाद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने लिखा था- “निस्संदेह बेहतर होता, यदि नेहरू को विदेश मंत्री तथा सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाया जाता। यदि पटेल कुछ दिन और जीवित रहते तो वे प्रधानमंत्री के पद पर अवश्य पहुँचते, जिसके लिए संभवत: वे योग्य पात्र थे।
भारत के देशभक्तों में एक अमूल्य रत्न सरदार पटेल को भारत सरकार ने सन 1991 में ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया आज सरदार वल्लभ भाई पटेल हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा। 31 अक्टूबर, उनकी जयंती पर अपनी भावांजली के साथ शत् शत् नमन करते हैं।
लेखन कार्य एवं प्रकाशित पुस्तकें
निरन्तर संघर्षपूर्ण जीवन जीने वाले सरदार पटेल को स्वतंत्र रूप से पुस्तक-रचना का अवकाश नहीं मिला, परंतु उनके लिखे पत्रों, टिप्पणियों एवं उनके द्वारा दिये गये व्याख्यानों के रूप में बृहद् साहित्य उपलब्ध है, जिनका संकलन विविध रूपाकारों में प्रकाशित होते रहा है। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण तो सरदार पटेल के वे पत्र हैं जो स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में दस्तावेज का महत्व रखते हैं।
1945 से 1950 ई० की समयावधि के इन पत्रों का सर्वप्रथम दुर्गा दास के संपादन में (अंग्रेजी में) नवजीवन प्रकाशन मंदिर से 10 खंडों में प्रकाशन हुआ था। इस बृहद् संकलन में से चुने हुए पत्र-व्यवहारों का वी० शंकर के संपादन में दो खंडों में भी प्रकाशन हुआ, जिनका हिंदी अनुवाद भी प्रकाशित किया गया। इन संकलनों में केवल सरदार पटेल के पत्र न होकर उन-उन संदर्भों में उन्हें लिखे गये अन्य व्यक्तियों के महत्वपूर्ण पत्र भी संकलित हैं। विभिन्न विषयों पर केंद्रित उनके विविध रूपेण लिखित साहित्य को संकलित कर अनेक पुस्तकें भी तैयार की गयी हैं।
उनके समग्र उपलब्ध साहित्य का विवरण इस प्रकार है:-
सरदार पटेल : चुना हुआ पत्र-व्यवहार (1945-1950) - दो खंडों में, संपादक- वी० शंकर, प्रथम संस्करण-1976, (नवजीवन प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद)
सरदारश्री के विशिष्ट और अनोखे पत्र (1918-1950) - दो खंडों में, संपादक- गणेश मा० नांदुरकर, प्रथम संस्करण-1981 (वितरक- नवजीवन प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद)
भारत विभाजन (प्रभात प्रकाशन, नयी दिल्ली)
गांधी, नेहरू, सुभाष
आर्थिक एवं विदेश नीति
मुसलमान और शरणार्थी
कश्मीर और हैदराबाद
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी
इसकी ऊँचाई 240 मीटर है, जिसमें 58 मीटर का आधार है। मूर्ति की ऊँचाई 182 मीटर है, जो स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी से लगभग दोगुनी ऊँची है। 31 अक्टूबर 2013 को सरदार वल्लभ भाई पटेल की 137वीं जयन्ती के मौके पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार वल्लभ भाई पटेल के एक नए स्मारक का शिलान्यास किया।
यहाँ लौह से निर्मित सरदार वल्लभ भाई पटेल की एक विशाल प्रतिमा लगाने का निश्चय किया गया, अतः इस स्मारक का नाम 'एकता की मूर्ति' (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) रखा गया है। प्रस्तावित प्रतिमा को एक छोटे चट्टानी द्वीप 'साधू बेट' पर स्थापित किया गया है जो केवाडिया में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के बीच स्थित है।
2018 में तैयार इस प्रतिमा को प्रधानमंत्री मोदी जी ने 31 अक्टूबर 2018 को राष्ट्र को समर्पित किया। यह प्रतिमा 5 वर्षों में लगभग 3000 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुई है।
विचार :
1. जीवन की डोर तो ईश्वर के हाथ में है, इसलिए चिंता की कोई बात हो ही नहीं सकती
2. कठिन समय में कायर बहाना ढूंढ़ते हैं बहादुर व्यक्ति रास्ता खोजते हैं
3. उतावले उत्साह से बड़ा परिणाम निकलने की आशा नहीं रखनी चाहिये
4. हमें अपमान सहना सीखना चाहिए
5. बोलने में मर्यादा मत छोड़ना, गालियाँ देना तो कायरों का काम है
6. शत्रु का लोहा भले ही गर्म हो जाये, पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही काम दे सकता है
7. आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिए अपनी आंखें को क्रोध से लाल होने दीजिये, और अन्याय का मजबूत हाथों से सामना कीजिये
आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है। इसलिए अपनी आँखों को क्रोध से लाल होने दीजिये, और अन्याय का सामना मजबूत हाथों से कीजिये।
यहाँ तक कि यदि हम हज़ारों की दौलत गवां दें। और हमारा जीवन बलिदान हो जाए, हमें मुस्कुराते रहना चाहिए और ईश्वर एवं सत्य में विश्वास रखकर प्रसन्न रहना चाहिए।
स्वतंत्र भारत में कोई भी भूख से नहीं मरेगा। अनाज निर्यात नहीं किया जायेगा। कपड़ों का आयात नहीं किया जाएगा। इसके नेता ना विदेशी भाषा का प्रयोग करेंगे ना किसी दूरस्थ स्थान, समुद्र स्तर से 7000 फुट ऊपर से शासन करेंगे। इसके सैन्य खर्च भारी नहीं होंगे. इसकी सेना अपने ही लोगों या किसी और की भूमि को अधीन नहीं करेगी। इसके सबसे अच्छे वेतन पाने वाले अधिकारी इसके सबसे कम वेतन पाने वाले सेवकों से बहुत ज्यादा नहीं कमाएंगे। और यहाँ न्याय पाना ना खर्चीला होगा ना कठिन होगा।
यह हर एक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह यह अनुभव करे की उसका देश स्वतंत्र है और उसकी स्वतंत्रता की रक्षा करना उसका कर्तव्य है. हर एक भारतीय को अब यह भूल जाना चाहिए कि वह एक राजपूत है, एक सिख या जाट है. उसे यह याद होना चाहिए कि वह एक भारतीय है और उसे इस देश में हर अधिकार है पर कुछ जिम्मेदारियां भी हैं।
कठिन समय में कायर बहाना ढूंढ़ते हैं बहादुर व्यक्ति रास्ता खोजते हैं।
एकता के बिना जनशक्ति, शक्ति नहीं है जब तक उसे ठीक ढंग से सामंजस्य में ना लाया जाए और एकजुट ना किया जाए, और तब यह आध्यात्मिक शक्ति बन जाती है।
Source: wikipedia, britannica
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