गुरु जम्भेश्वर भगवान की जीवनी । जांभोजी का जन्म
नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में आप राजस्थान के प्रमुख संत जांभोजी विश्नोई संप्रदाय के संस्थापक के इतिहास ( Jambho ji History in Hindi ) के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे
गुरू जम्भेश्वर बिश्नोई संप्रदाय के संस्थापक थे। ये जाम्भोजी के नाम से भी जाने जाते है। इन्होंने 1485 में बिश्नोई पंथ की स्थापना की। 'हरि' नाम का वाचन किया करते थे। हरिभगवान विष्णु का एक नाम हैं। बिश्नोई शब्द मूल रूप से वैष्णवी शब्द से निकला है, जिसका अर्थ है :- विष्णु से सम्बंधित अथवा विष्णु के उपासक। गुरु जम्भेश्वर का मानना था कि भगवान सर्वत्र है। वे हमेशा पेड़ पौधों वन एवं वन्यजीवों सभी जानवरों पृथ्वी पर चराचर सभी जीव जंतुओं की रक्षा करने का संदेश देते थे। किसी प्रकार कि जीव हत्या को पाप मानते थें। शुद्ध शाकाहारी भोजन खाने कि बात समझाते थें। इन्होंने समराथल धोरा पर विक्रम संवत के अनुसार कार्तिक माह में 8 वर्ष तक बैठ कर तपस्या की थी।
श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान का जीवन परिचय
जन्म : वि. संवत् 1508 भाद्रपद बदी 8 कृष्ण जन्माष्टमी को अर्द्धरात्रि कृतिका नक्षत्र में (सन् 1451)
ग्राम : पींपासर जिला नागौर (राज.)
पिताजी : ठाकुर श्री लोहटजी पंवार
काकाजी : श्री पुल्होजी पंवार (इनको प्रथम बिश्नोई बनाया था।)
बुआ : तांतूदेवी
दादाजी : श्री रावलसिंह सिरदार (रोलोजी) उमट पंवार ये महाराजा विक्रमादित्य के वंश की 42 वीं पीढ़ी में थे।
ननिहाल : ग्राम छापर (वर्तमान ताल छापर) जिला चुरू (राज.)
माताजी : हंसा (केसर देवी)
नानाजी : श्री मोहकमसिंह भाटी (खिलेरी)
** वि.सं. 1540 में चेत्र सुदी नवमी को पिताजी लोहटजी का स्वर्गवास
** उसके पांच महीने बाद माताजीकेसर देवी का स्वर्गवास।
** सात वर्ष तक मौन एवं सत्ताईस वर्ष गायें चराने के बाद
** 34 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर समराथल धोरे पर गमन एवं सन्यास धारण।
** वि. सं. 1542 में कार्तिक बदी 8 से अमावस्या तक बिश्नोई धर्म स्थापना।
** 51 वर्ष तक देश-विदेशों में भ्रमण किया। राजा-महाराजा, अमीर -गरीब, साधु-गृहस्थों को विभिन्न चमत्कार दिखाए। उपदेश दिए एवं वि.सं. 1593 मिंगसर बदी नवमी चिलतनवमी के दिन लालासर की साथरी पर निर्वाण को प्राप्त हुए।
इनका जन्म राजस्थान के नागौर परगने के पीपासर गांव में सन् 1451 में (विक्रम संवत 1508 भाद्रपद अष्टमी सोमवार) हुआ था।
जाम्भो जी का मूल नाम धनराज था ।
जम्भेश्वर जी का जन्म 1451 ईं (विक्रम सम्वत 1508) में जन्माष्टमी के दिन नागौर जिले के पीपासर गाँव में हुआ था ।
जम्मेश्वर जी के पिता का नाम लोहट जी तथा माता का नाम हंसादेवी था ।
इनके पिता पंवार राजपूत थे ।
इनके गुरू का नाम गोरखनाथ था ।
इनकी माता हंसादेवी ने उन्हें श्रीकृष्ण का अवतार माना ।
जाम्भोजी का जन्म किसान परिवार में सन् 1451 में हुआ था। इनके पिताजी का नाम लोहट जी पंवार तथा माता का नाम हंसा कंवर(केसर) था, ये अपने माता-पिता की एकमात्र संतान थे। जाम्भोजी अपने जीवन के शुरुआती 7 वर्षों तक कुछ भी नहीं बोले थे तथा न ही इनके चेहरे पर हंसी रहती थीं। इन्होंने 27 वर्ष तक गौपालन किया। गुरु जम्भेश्वर भगवान ने सन् 1485 में बिश्नोई संप्रदाय की स्थापना की थी। इन्होंने शब्दवाणी के माध्यम से संदेश दिए थे , इन्होंने अगले 51 वर्ष तक में पूरे भारतवर्ष का भ्रमण किया। वर्तमान में शब्दवाणी में सिर्फ 120 शब्द ही है। बिश्नोई समाज के लोग 29 धर्मादेश (नियमों) का पालन करते है ये धर्मादेश गुरु जम्भेश्वर भगवान ने ही दिए थे। इन 29 नियमों में से 8 नियम जैव वैविध्य तथा जानवरों की रक्षा के लिए है , 7 धर्मादेश समाज कि रक्षा के लिए है। इनके अलावा 10 उपदेश खुद की सुरक्षा और अच्छे स्वास्थ्य के लिए है और बाकी के चार धर्मादेश आध्यात्मिक उत्थान के लिए हैं जिसमें भगवान को याद करना और पूजा-पाठ करना। बिश्नोई समाज का हर साल मुकाम या मुक्तिधाम मुकाम में मेला भरता है जहां लाखों की संख्या में बिश्नोई समुदाय के लोग आते हैं। गुरु जी ने जिस बिश्नोई संप्रदाय की स्थापना की थी उस 'बिश' का मतलब 20 और 'नोई' का मतलब 9 होता है इनको मिलाने पर 29 होते है बिश+नोई=बिश्नोई/। बिश्नोई संप्रदाय के लोग खेजड़ी (Prosopic cineraria) को अपना पवित्र पेड़ मानते हैं।
गुरु जम्भेश्वर भगवान (जाम्भोजी) का जन्म राजस्थान के नागौर ज़िले के पीपासर गांव में 1451 कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन एक किसान परिवार में हुआ था। भगवान कृष्ण का भी जन्म उसी तिथि को हुआ था। इनके बूढ़े पिता लोहट जी की 50 वर्ष की आयु तक कोई संतान नहीं थीं इस कारण वे दुखी थे। 51भगवान विष्णु के बाल संत के रूप में आकर लोहट की तपस्या से प्रसन्न होकर उनको पुत्र प्राप्ती का वचन दिया। जाम्भोजी ने अपने जन्म के बाद अपनी माँ का दूध नहीं पिया था। साथ ही जन्म के बाद 7 वर्ष तक मौन रहे थे। जाम्भोजी ने अपना पहला शब्द (गुरु चिंहो गुरु चिन्ह पुरोहित) बोला था और अपना मौन खोला था। जम्भदेव सादा जीवन वाले थे लेकिन काफी प्रतिभाशाली थे साथ ही संत प्रवृति के कारण अकेला रहना पसंद करते थे। जाम्भोजी ने विवाह नहीं किया, इन्हें गौपालन प्रिय लगता था। 34 वर्ष की आयु में समराथल धोरा नामक जगह पर उपदेश देने शुरू किये थे। ये समाज कल्याण की हमेशा अच्छी सोच रखते थे तथा हर दुःखी की मदद किया करते थे। मारवाड़ में 1585 में अकाल पड़ने के कारण यहां के लोगों को अपने पशुओं को लेकर मालवा जाना पड़ा था, इससे जाम्भोजी बहुत दुःखी हुए। फिर जाम्भोजी ने उन दुःखी किसानों को यहीं पर रुकने को कहा बोलें कि मैं आप की यहीं पर सहायता करूँगा। इसी बीच गुरु जम्भदेव ने दैवीय शक्ति से सभी को भोजन तथा आवास स्थापित करने में सहायता की। हिन्दू धर्म के अनुसार वो काल निराशाजनक काल कहलाया था। उस वक़्त यहां पर आम जनों को बाहरी आक्रमणकारियों का बहुत भय था साथ ही लोग हिन्दू धर्म संस्कृति में विभिन्न देवी देवताओं की पूजा करते थे। इसलिए दुःखी लोगों की सहायता के लिए ईश्वर एक है के सिद्धांत पर गुरु जम्भेश्वर ने san 1485 में बिश्नोई संप्रदाय की स्थापना की।
शिक्षा
जाम्भोजी ने अपने जीवनकाल में अनेक वचन कहे किन्तु अब 120 शब्द ही प्रचलन में हैं जो वर्तमान में शब्दवाणी के नाम से जाने जाते हैं।[1] गुरु जम्भेश्वरजी द्वारा स्थापित बिश्नोई पंथ में 29 नियम[2] प्रचलित हैं जो धर्म, नैतिकता, पर्यावरण और मानवीय मूल्यों से संबंधित हैं।
बिश्नोई समुदाय
बिश्नोई हिन्दू धर्म का एक व्यावहारिक एवं सादे विचार वाला समुदाय है, इसकी स्थापना गुरु जम्भेश्वर भगवान ने 1485 में की थी। "बिश्नोई" इस शब्द की उत्पति वैष्णवी शब्द से हुई है जिसका अर्थ है विष्णु के अनुयायी। गुरू महाराज द्वारा बनाये गये 29 नियम का पालन करने पर इस समाज के लोग 20+9 = 29 (बीस+नौ) बिश्नोई कहलाये। यह समाज वन्य जीवों को अपना सगा संबधी जैसा मानते है तथा उनकी रक्षा करते है। वन्य जीव रक्षा करते-करते कई लोग वीरगति को प्राप्त भी हुए है। यह समाज प्रकृति प्रेमी भी है।
खेजड़ली का बलिदान - खेजड़ली वृक्षार्थ बलिदान स्थल
खेजड़ली एक गांव है जो राजस्थान के जोधपुर ज़िले में स्थित है यह दक्षिण-पूर्व से जोधपुर शहर से 26 किलोमीटर दूर है। खेजड़ली गांव का नाम खेजड़ी (Prosopic cineraria) पर रखा गया। 12सितम्बर1730 में इस गांव में खेजड़ी को बचाने के लिए अमृता देवी तथा कुल 363 बिश्नोई लोगों ने बलिदान दिया था। यह चिपको आंदोलन की पहली घटना थी जिसमें पेड़ों की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया गया।।चोरासी गांव के बिश्नोई समाज के लोंग खेजड़ली बलिदान में शहीद होने के लिए शामिल हुए थे।[3] बिश्नोई समाज के चोरासी गांवों का सामाजिक न्यायिक मुख्यालय खैजड़ली शहीद स्थल हैं।
जम्मेश्वर जी ने 34 वर्ष की उम्र में सारी सम्पति दान कर दी और दिव्य ज्ञान प्राप्त करने बीकानेर के संभराथल नामक स्थान पर चले गये ।
जाम्भो जी ने बिश्नोई समाज में धर्म की प्रतिष्ठा के लिए 29 नियम बनाये ।
इसी तरह बीस और नौ नियमों को मानने वाले बीसनोई या बिश्नोई कहलाये ।
संत जम्भेश्वर जी को पर्यावरण वैज्ञानिक कहा जाता है । जाम्भो जी ने 1485 में समराथल (बीकानेर) में बिश्नोई सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया ।
jambhoji ki pramukh granth
जाम्भो जी ने ' जम्भसंहिता ' ' जम्भसागर शब्दावली ' और ' बिश्नोई धर्म प्रकाश ' आदि ग्रन्थों की रचना की गई ।
जम्भेश्वर जी के द्वारा रचित 120 शब्द जम्भवाणि में जम्भ सागर संग्रहित है ।
संत जाम्भो जी ने हिन्दू तथा मुस्लिम धर्मों में व्याप्त भ्रमित आडम्बरों का विरोध किया ।
पुरानी मान्यता के अनुसार जम्मेश्वर जी के प्रभाव के फलस्वरूप ही सिकन्दर लोदी ने गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाया था ।
बिश्नोई सम्प्रदाय की स्थापना
संत जाम्भो जी ने बिश्नोई सम्प्रदाय की स्थापना कार्तिक बदी अष्टमी को संभराथल के एक ऊंचे टीले पर की थी, उस टीले को इस पंथ में ' धोक धोरे ' के नाम से जाना जाता है ।
गुरू जम्भेश्वर जी के मुख से उच्चारित वाणी शब्दवाणी कहलाती है । इसी को जम्भवाणि और गुरू वाणी भी कहा जाता है
बीकानेर नरेश ने संत जाम्भो जो के सम्मान में अपने राज्य बीकानेर के झंडे में खेजड़े के वृक्ष को माटों के रूप में रखा ।
जाम्भो जो के अनुयायी 151 शब्दों का संकलन जम्भ गीत को ' पांचवां वेद ‘ मानते है । यह राजस्थानी भाषा का अनुपम ग्रंथ है ।
राव दूदा जम्भेश्वर के समकालीन थे ।
बिश्नोई नीले वस्त्र का त्याग करते है ।
जाम्भो जो के उपदेश स्थल साथरी कहलाते है
बिश्नोई सम्प्रदाय में गुरू जाम्भो जी को विष्णु का अवतार मानते है । गुरू जाम्भो जी का मूलमंत्र था हृदय से विष्णु का नाम जपो और हाथ से कार्य करो ।
गुरू जाम्भो जी ने संसार को नाशवान और मिथ्या बताया । इन्होंने इसे 'गोवलवास (अस्थाई निवास) कहा ।
पाहल
गुरू जाम्भीजी द्वारा तैयार ' अभिमंत्रित जल ' जिसे पिलाकर इन्होंने आज्ञानुवर्ती समुदाय को बिश्नोई पंथ में दीक्षित किया था ।
"कथा जैसलमेर की'…
संतं कवि वील्होजी (सन् 1532-1616) द्वारा लिखित इतिहास प्रसिद्ध कविता, जिसमें ऐसे छ: राजाओं के नामों का पता चलता है, जो उनके समकालीन थे और उनकी शरण में आये थे ।
ये छ: राजा थे…
दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोदी
नागौर का नवाब मुहम्मद खान नागौरी,
मेड़ता का राव दूदा,
जैसमलेर का राव जैतसी
जोधपुर का राठौड़ राव सातल देव
मेवाड का महाराणा सागा ।
पीपासर
नागौर जिले में स्थित पीपासर गुरू जम्मेश्वर जी की जन्म स्थली है ।
यहाँ उनका मंदिर है तथा उनका प्राचीन घर और उनकी खडाऊ यहीं पर है ।
मुक्तिधाम मुकाम
यहाँ गुरू जम्भेश्वर जी का समाधि स्थल हैं।
बीकानेर जिले की नोखा तहसील में स्थित मुकाम में सुन्दर मंदिर भी बना हुआ है ।
जहाँ प्रतिवर्ष फाल्गुन और अश्विन की अमावस्या को मेला लगता है ।
लालसर (बीकानेर)
जम्मेश्वर जी ने यहाँ निर्वाण प्राप्त किया था ।
जाम्भा
जोधपुर जिले के फलौदी तहसील में जाम्भा गाँव है। जम्भेश्वर जी के कहने पर जैसलमेर के राजा जैतसिंह ने यहाँ एक तालाब बनाया था । बिश्नोई समाज के लिए यह पुष्कर के समान पावन तीर्थ है ।
यहाँ प्रत्येक वर्ष चैत्र अमावस्या व भाद्र पूर्णिमा को मेला लगता है ।
जांगलू
यह बीकानेर की नोखा तहसील में स्थित है । जम्भेश्वर जी का यहाँ पर सुन्दर मंदिर है ।
रामड़ावास
यह जोधपुर जिले में पीपल के पास स्थित है । यहाँ जम्भेश्वर जी ने उपदेश दिये थे ।
लोदीपुर
उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले में स्थित है । अपने भ्रमण के दौरान जम्मेश्वर जी यहाँ आये थे ।
बिश्नोई संप्रदाय भेड पालना पसंद नहीं करते, क्योंकि भेड़ नव अंकुरित पौधों को खा जाती है ।
समाधि
1526 ईं. (वि सं 1593) में त्रयोदशी के दिन मुकाम नामक गाँव में समाधि ली थी ।