राजा बीरबल की जीवनी | अकबर और बीरबल के किस्से कहानियाँ, चुटकुले

बीरबल बादशाह के चुटकुले | अकबर और बीरबल की मजेदार कहानियाँ | बीरबल की खिचड़ी | बीरबल की मौत कैसे हुई | बीरबल की बुद्धिमानी | बीरबल की विशेषताएं | बीरबल की चतुराई के किस्से | बीरबल के बारे में पाँच वाक्य

राजा बीरबल की जीवनी – Biography of Birbal in Hindi :- बीरबल मुग़ल शासक अकबर के दरबार के वो सबसे प्रसिद्ध सलाहकार थे. बीरबल भारतीय इतिहास में उनकी चतुराई के लिये जाने जाते है, और उनपर लिखित काफी कहानिया भी हमे देखने को मिलती, जिसमे बताया गया है की कैसे बीरबल चतुराई से अकबर की मुश्किलो को हल करते थे. 1556-1562 में अकबर ने बीरबल को अपने दरबार में कवी के रूप में नियुक्त किया था.

बीरबल का मुग़ल साम्राज्य के साथ घनिष्ट संबंध था, इसीलिये उन्हें महान मुग़ल शासक अकबर के नवरत्नों में से एक कहा जाता था. 1586 में, उत्तरी-दक्षिणी भारत में लड़ते हुए वे शहीद हुए थे. 

बीरबल की कहानियो का कोई सबूत हमें इतिहास में दिखाई नही देता. अकबर के साम्राज्य के अंत में, स्थानिक लोगो ने अकबर-बीरबल की प्रेरित और प्रासंगिक कहानिया बनानी भी शुरू की. अकबर-बीरबल की ये कहानिया पुरे भारत में धीरे-धीरे प्रसिद्ध होने लगी थी. 

राजा बीरबल का जीवन परिचय

जन्म पण्डित महेश दास भट्ट, 1528 सीधी मध्यप्रदेश, भारत
निधन 16 फरवरी 1586 (उम्र 57-58), स्वात घाटी, आज पाकिस्तान
पत्नी  उर्वशी देवी
संतान सौदामणि दूबे (पुत्री)
धर्म हिन्दू धर्म, दीन ए इलाही
पेशा अकबर के साम्राज्य में दरबारी और सलाहकार

बीरबल का बचपन

बीरबल का जन्म महेश दास के नाम से 1528 में, कल्पी के नजदीक किसी गाव में हुआ था. इनके बचपन का नाम महेश दास था। बचपन से ही वो बहुत ही चतुर एवं बुद्धिमान थे। 

आज उनका जन्मस्थान भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में आता है. इतिहासकारो के अनुसार उनका जन्मगाव यमुना नदी के तट पर बसा टिकवनपुर था. 

उनके जन्म के विषय मे मतभिन्नता है। कुछ विद्वान उन्हें आगरा के निवासी, कोई कानपुर के घाटमपुर तहसील के, कोई दिल्ली के निवासी और कोई मध्य प्रदेश के सीधी जिले का निवासी बताते हैं। पर ज्यादातर विद्वान मध्य प्रदेश के सीधी जिले के घोघरा गाँव को ही बीरबल का जन्मस्थान स्वीकार करते हैं।

उनके पिता का नाम गंगा दास और माता का नाम अनभा दवितो था. वे हिन्दू ब्राह्मण परीवार जिन्होंने पहले भी कविताये या साहित्य लिखे है, उनके तीसरे बेटे थे. 

बीरबल / Birbal हिंदी, संस्कृत और पर्शियन भाषा में शिक्षा प्राप्त की थी. बीरबल कविताये भी लिखते थे, ज्यादातर उनकी कविताये ब्रज भाषा में होती थी, इस वजह से उन्हें काफी प्रसिद्धि भी मिली थी. 

बीरबल का अकबर से मिलन

अकबर से मिलन संबंधी अनेक कथाएं प्रचलित है। सबसे प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार बादशाह अकबर ने अपने एक पान का बीड़ा लगाने वाले नौकर को एक "पाओभर" (आज का लगभग 250 ग्राम) चूना लेकर आने को कहा। 

नौकर किले के बाहर दुकान करने वाले पनवाड़ी से पाओभर चूना लेने गया। इतना सारा चूना ले जाते देख पनवाड़ी को कुछ शक होता है। इसलिए बीरबल नौकर से पूरा घटनाक्रम जानता है, और कहता है कि बादशाह यह चूना तुझको ही खिलवायेगा। 

तेरे पान में लगे ज्यादा चूने से बादशाह की जीभ कट गई है, इसलिए यह सब चूना तुझे ही खाना पड़ेगा। इसलिए इतना ही घी भी ले जा, जब बादशाह चूना खाने को कहे तो चूना खाने के बाद घी पी लेना।

नौकर दरबार मे चूना लेकर जाता है, और बादशाह नौकर को वह सारा पाओभर (250 ग्राम) चूना खाने का आदेश देता है। नौकर वह सारा चूना खा लेता है, लेकिन उस पनवाड़ी बीरबल की सलाह के अनुसार घी भी पी लेता है। 

अगले दिन जब बादशाह का वह नौकर पुनः जब राज दरबार पहुचता है, तो अकबर उसे जीवित देख आश्चर्य से उसके जीवित बचने का कारण जानता है। नौकर सारी बात बादशाह को बताता है, कि कैसे किले के बाहर के पनवाड़ी की समझ-बूझ से वह बच सका। 

बादशाह उस पनवाड़ी की बुद्धिमत्ता से प्रभावित हो उसे दरबार मे बुलवाते है। इस प्रकार बादशाह अकबर और बीरबल का पहली बार आमना सामना होता है। और अकबर ऐसे बुद्धिमान व्यक्ति को अपने दरबार मे स्थान देते हैं।

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अकबर और बीरबल के संबंध 

बीरबल महेशदास नामक बादफ़रोश ब्राह्मण थे जिसे हिन्दी में भाट कहते हैं। यह जाति धनाढ्यों की प्रशंसा करने वाली थी। यद्यपि बीरबल कम पूँजी के कारण बुरी अवस्था में दिन व्यतीत कर रहे थे, पर बीरबल में बुद्धि और समझ भरी हुई थी। 

अपनी बुद्धिमानी और समझदारी के कारण यह अपने समय के बराबर लोगों में मान्य हो गए। जब सौभाग्य से अकबर बादशाह की सेवा में पहुँचे, तब अपनी वाक्-चातुरी और हँसोड़पन से बादशाही मजलिस के मुसाहिबों और मुख्य लोगों के गोल में जा पहुँचे और धीरे-धीरे उन सब लोगों से आगे बढ़ गए। 

बहुधा बादशाही पन्नों में इन्हें मुसाहिबे-दानिशवर राजा बीरबल लिखा गया है। 

जब राजा लाहौर पहुँचे तो हुसैन कुली ख़ाँ ने जागीरदारों के साथ ससैन्य नगरकोट पहुँचकर उसे घेर लिया। जिस समय दुर्ग वाले कठिनाई में पड़े हुए थे, दैवात् उसी समय इब्राहीम हुसेन मिर्ज़ा का बलवा आरम्भ हो गया था और इस कारण कि उस विद्रोह का शान्त करना उस समय का आवश्यक कार्य था, इससे दुर्ग विजय करना छोड़ देना पड़ा। 

अंत में राजा की सम्मति से विधिचन्द्र से पाँच मन सोना और ख़ुतबा पढ़वाने, बादशाही सिक्का ढालने तथा दुर्ग काँगड़ा के फाटक के पास मसजिद बनवाने का वचन लेकर घेरा उठा लिया गया। 30वें वर्ष सन् 994 हि. (सन् 1586 ई.) में जैन ख़ाँ कोका यूसुफ़जई जाति को, जो स्वाद और बाजौर नामक पहाड़ी देश की रहनेवाली थी, दंड देने के लिए नियुक्त हुआ था। उसने बाजौर पर चढ़ाई करके स्वात पहुँच कर उस जाति को दंड दिया।

घाटियाँ पार करते-करते सेना थक गई थी, इसलिये जैन ख़ाँ कोका ने बादशाह के पास नई सेना के लिए सहायतार्थ प्रार्थना की। शेख अबुल फ़ज़ल ने उत्साह और स्वामिभक्ति से इस कार्य के लिये बादशाह ने अपने को नियुक्त किये जाने की प्रार्थना की।

बीरबल ऐतिहासिक भूमिका बनाम लोककथाओं

लोक कथाओं में, उन्हें अकबर की तुलना में कम उम्र के एक धार्मिक हिंदू के रूप में हमेशा चित्रित किया जाता है, और मुस्लिम दरबारियों के विरोध में नैतिक रूप से कड़े होते हैं, जो उनके खिलाफ षड्यंत्र करते हैं; उनकी सफलता केवल उनके कौशल के कारण थी और उन्होंने सम्राट को इस्लाम से हिंदू धर्म की परवरिश करने का आश्वासन दिया। 

इस प्रकार उन्हें अकबर पर धार्मिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत प्रभाव प्राप्त करने के रूप में दर्शाया गया है, जो कि उनकी बुद्धि और तेज जीभ का प्रयोग करते हैं और कभी हिंसा नहीं करते हैं। हालांकि, ऐतिहासिक रूप से उन्होंने कभी ऐसी भूमिका नहीं निभाई। 

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अपने बुद्धि या कविता के बजाय सम्राट के विश्वासपात्र के रूप में अपनी आध्यात्मिक उत्कृष्टता और स्थिति पर बल देते हुए, अबल फजल ने उन्हें सम्मानित किया।

आधुनिक हिंदू विद्वानों ने दावा किया कि उन्होंने अकबर को बोल्ड फैसले बनाया और अदालत में रूढ़िवादी मुस्लिम उन्हें तुच्छ जाना, क्योंकि उसने अकबर को इस्लाम का त्याग दिया लेकिन कोई सबूत मौजूद नहीं है कि उन्होंने अकबर के विश्वासों को प्रभावित किया। 

हालांकि सूत्रों का कहना है कि उन्होंने अकबर की नीतियों को कुछ हद तक प्रभावित किया था। यह उनके लिए अकबर का स्नेह था, उनकी धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक उदारवाद जो इसके लिए कारण था और बीरबल का कारण नहीं था। ऐतिहासिक रूप से, वह अकबर की धार्मिक नीति के समर्थक और उनके धर्म, दीन-ए-इलैही थे।

बीरबल की मौत कैसे हुई?

अफगानिस्तान के यूसुफ़जई कबीले ने मुग़ल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद किया | उसके दमन के लिए जो जैन ख़ाँ कोका के नेतृत्व में पहला सैन्य दल भेजा गया | लड़ते लड़ते वह सैन्य दल थक गया तो बीरबल के नेतृत्व में दूसरा दल वहां भेजा गया | 

बुद्धि कौशल के महारथी को सैन्य अभियानों का कोई अधिक अनुभव नहीं था | सिवाय इसके कि वे सदैव सैन्य अभियानों में भी अकबर के साथ रहते थे | पूर्व के सेनापति कोका को एक हिन्दू के साथ साथ अभियान करना कतई गवारा नहीं हुआ | 

पारस्परिक मनोमालिन्य के चलते स्वात वैली में 8000 सैनिकों के साथ अकबर के सखा बीरबल खेत रहे | इतना ही नहीं तो अंतिम संस्कार के लिए उनका शव भी नहीं मिला |

अकबर और बीरबल की मशहूर किस्से कहानियाँ 

दोस्तों, वैसे तो दुनिया में लाखों कहानियां हैं लेकिन जो मजा अकबर-बीरबल के किस्सों में है वो कहीं नहीं। इनकी कहानियां सदियों से हमारा मनोरंजन करती आ रही हैं। आज हम उनकी कहानियों में से कुछ बेहद मनोरंजक कहानी आपको बताने जा रहे हैं.

अकबर-बीरबल के रोचक किस्से : कितनी माता हैं तुम्हारी ?

एक बार अकबर-बीरबल हमेशा की तरह टहलने जा रहे थे। रास्ते में एक तुलसी का पौधा दिखा तो मंत्री बीरबल ने झुककर प्रणाम किया।

अकबर ने पूछा- कौन है ये?

बीरबल- ये मेरी माता हैं।

अकबर ने तुलसी के झाड़ को उखाड़कर फेंक दिया और बोला- कितनी माता हैं तुम लोगों की?

बीरबल को उसका जवाब देने की एक तरकीब सूझी। आगे एक बिच्छूपत्ती (खुजली वाला) झाड़ मिला। बीरबल ने उसे दंडवत् प्रणाम कर कहा- जय हो बाप मेरे।

अकबर को गुस्सा आया और दोनों हाथों से झाड़ को उखाड़ने लगा। इतने में अकबर को भयंकर खुजली होने लगी तो अकबर बोला- बीरबल ये क्या हो गया?

बीरबल ने कहा- आपने मेरी मां को मारा इसलिए ये गुस्सा हो गए।

अकबर जहां भी हाथ लगाता, खुजली होने लगती तथा बोला कि बीरबल जल्दी ही कोई उपाय बताओ।

बीरबल बोला- उपाय तो है लेकिन वो भी हमारी मां है तथा उससे ही विनती करनी पड़ेगी।

अकबर बोला- जल्दी करो।

आगे गाय खड़ी थी। बीरबल ने कहा- गाय से विनती करो कि हे माता, दवाई दो।

गाय ने गोबर कर दिया और अकबर के शरीर पर उसका लेप करने से फौरन खुजली से राहत मिल गई।

अकबर बोला- बीरबल, अब क्या हम राजमहल में ऐसे ही जाएंगे?

बीरबल ने कहा- नहीं बादशाह, हमारी एक और मां है। सामने ही गंगा बह रही थी। आप बोलिए हर-हर गंगे, जय गंगा मइया की और कूद जाइए।

नहाकर अपने आप को तरोताजा महसूस करते हुए अकबर ने बीरबल से कहा कि ये तुलसी माता, गौमाता, गंगा माता तो जगतमाता हैं। इनको मानने वालों को ही 'हिन्दू' कहते हैं।

फ़ारसी में टक्कर : अकबर और बीरबल की मजेदार कहानियाँ

अकबर और बीरबल एक बार यमुना तट पर टहल रहे थे। मौसम सुहाना था। उन दिनों बीरबल को फ़ारसी सीखने का शौक़ चर्राया था। ऐसे भी फ़ारसी जानना उन दिनों विद्वत्ता की पहचान थी, क्योंकि शासन की भाषा फ़ारसी ही थी।

अकबर को इस बात की जानकारी थी कि बीरबल इन दिनों फ़ारसी सीख रहे हैं। उन्हें बीरबल के साथ चुहल करने का मन हो आया। बीरबल के साथ टहलते-टहलते अकबर उस स्थान पर चले आए, जहां पर उन्होंने और बीरबल ने अपने घोड़े को बांधा था।

बीरबल को बादशाह के घोड़ों के पास आने का मतलब यही समझ में आया कि अकबर अब महल की वापसी के लिए तत्पर हैं, इसलिए वे भी अपने घोड़े के पास चले गए और उसे खोलने लगे।

अकबर उसे घोड़ा खोलते देखते हुए अपने घोड़े को सहलाते रहे। घोड़े की लगाम जब बीरबल ने ठीक की, तब अकबर ने चुहल करते हुए बीरबल से कहा, ‘भई अस्प पिदर शुमास्त।’

फ़ारसी में ‘भई अस्प पिदर शुमास्त’ के दो अर्थ हैं। बीरबल दोनों अर्थ समझते थे। इसका पहला अर्थ है, ‘यह घोड़ा तुम्हारे बाप का है।’ और दूसरा अर्थ है, ‘यह घोड़ा तुम्हारा बाप है।’

बीरबल ने जब अकबर के मुंह से यह द्विअर्थी संवाद सुना तो मुस्कराते हुए बहुत विनम्रता से बोले, ‘दाद: हुजूरस्त!’

फ़ारसी में इस वाक्य के भी दो अर्थ हैं- पहला अर्थ है, ‘हुज़ूर का ही दिया हुआ है।’ और दूसरा अर्थ है, ‘हुजू़र का दादा है।’

बीरबल के मुंह से अपने द्विअर्थी संवाद का द्विअर्थी जवाब सुनकर अकबर झेंप गए।

बात भी सच थी कि बीरबल को वह घोड़ा अकबर ने भेंटस्वरूप प्रदान किया था।

इसके बाद अकबर ने बीरबल से फ़ारसी में टक्कर लेने की कभी कोशिश नहीं की।

बादशाही मुर्ग़ियों के बीच इकलौता मुर्ग़ा

अकबर और बीरबल के बीच सम्बंध कुछ इस तरह प्रगाढ़ हो चले थे कि उनके बीच मर्यादा और औपचारिकता की सीमाएं टूटने लगी थीं। कई बार उनके बीच चलने वाली नोक-झोंक में अनुशासन का पालन हो पाना बहुत मुश्किल हो जाता था और उसकी चपेट में सारे दरबारी भी आ जाते थे।

एक बार अकबर ने बीरबल को बेवक़ूफ़ बनाने की सोची। इससे पहले जब कभी भी अकबर ने बीरबल को छकाने का प्रयास किया था, तब उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी। इसलिए अकबर ने अपने इस प्रयत्न में मंत्रियों और दरबारियों को भी शामिल कर लिया था।

अकबर ने मंत्रियों और दरबारियों को इस बात के लिए राज़ी किया था कि बीरबल जब दरबार में आएंगे, तब वे उन्हें बताएंगे कि रात को उन्होंने एक स्वप्न देखा है, जिसमें एक फ़रिश्ते ने उनसे कहा कि राजमहल के पास जो तालाब है, उसमें उनके दरबारी बारी-बारी से ग़ोता लगाएं। 

जो दरबारी एक अंडे के साथ तालाब से निकलेगा, वह शरीफ़ होगा और जो बिना अंडे के बाहर निकलेगा, वह होगा पक्का शैतान! इतना बताकर अकबर ने सभी मंत्रियों एवं दरबारियों को एक-एक अंडा दिलवा दिया, जिसे उन लोगों ने अपने अंत:वस्त्रों में छुपा लिया।

जब दरबार में बीरबल आए तो अकबर ने अपने सपने का ऐलान करते हुए सपने का विवरण दिया और इसके बाद मंत्रियों एवं दरबारियों से चलकर तालाब में बारी-बारी से डुबकी लगाने को कहा।

बीरबल यह देखकर चकित रह गए कि अकबर के स्वप्न की चर्चा सुनकर किसी भी दरबारी ने कोई सवाल ही उठाया। आश्चर्यजनक रूप से सबके सब तालाब में डुबकी लगाने के लिए तैयार हो गए। यह सवाल बीरबल के मन में उमड़ने-घुमड़ने लगा। 

अब चूंकि सब तालाब की ओर जा रहे थे, इसलिए बीरबल की भी मजबूरी हो गई कि वे भी उनके साथ चलें। बीरबल ने एक विचित्र बात यह भी महसूस की कि सभी दरबारी अधिक चपल और प्रसन्न दिख रहे थे। 

बादशाह, जो ऐसे मौक़ों पर बीरबल को साथ रखना पसंद करते थे, अपने मंत्रियों के साथ चल रहे थे। इस भीड़ में बीरबल ख़ुद को अकेले पा रहे थे।

तालाब के किनारे पहुंचने के बाद अकबर के बैठने की व्यवस्था हुई। बादशाह के तख़्त के पास टोकरी भी रख दी गई। थोड़ी ही देर में तालाब के आस-पास का नज़ारा बदल गया। 

एक-एक करके दरबारी तालाब में उतरते, डुबकी लगाते और हाथ में अंडा लिए बाहर निकलते। वे अंडे को बादशाह के पास रखी टोकरी में रखकर तख़्त के दूसरी तरफ़ दरबारियों के लिए बनाए गए स्थान पर जाकर बैठ जाते।

सभी मंत्रियों और दरबारियों ने डुबकी लगा ली थी। सबके सब अंडे के साथ तालाब से बाहर आए थे।

अंत में अकबर कहा, ‘बीरबल! अब तुम भी डुबकी लगा ही लो!’

बीरबल का मस्तिष्क तेज़ गति से काम कर रहा था। उन्हें विश्वास हो चला था कि इस डुबकी लगाने वाले खेल में बादशाह भी शामिल हैं, वरना अनेक धूर्त मंत्रियों और कुटिल दरबारियों के हाथ में तो अंडे नहीं आते। 

यह सब सोचते हुए बीरबल तालाब में उतरे, डुबकी लगाई, लेकिन हाथ में अंडा नहीं आया।

बीरबल तालाब से निकलते-निकलते एक निर्णय पर पहुंचे और ज़ोर से बांग दी। वे बांग देते-देते ही बादशाह के पास पहुंचे।

अकबर ने उन्हें ख़ाली हाथ आया देखकर पूछा, ‘बीरबल! तुम बिना अंडे के?’

बीरबल ने फिर से ज़ोरदार बांग लगाई और कहा, ‘जहांपनाह! आपकी अंडा देने वाली मुर्ग़ियों के बीच मैं ही तो एकमात्र मुर्ग़ा था। अब मेरी बात का भरोसा न हो तो आप भी पानी में उतरकर आज़मा लें।’

बीरबल की बात सुनकर बादशाह भी झेंप गए और मंत्रियों एवं दरबारियों की ज़ुबान लज्जा के कारण खुल नहीं पाई।

बादशाह ने अपनी झेंप मिटाते हुए कहा, ‘बीरबल! तुमसे पार पाना मुमकिन नहीं है।’

अकबर और बीरबल की मजेदार कहानियाँ - बाल पर सवाल  

अकबर और बीरबल के बीच एक विचित्र सम्बंध था। दोनों के बीच नोक-झोंक और एक-दूसरे पर कटाक्षों का उपयोग ख़ूब हुआ करता था। वाक्‌-चातुर्य अकबर में भी था किंतु बीरबल प्राय: बाज़ी मार जाते थे। 

एक बार अकबर ने बीरबल से पूछा, ‘बीरबल! तुम तो जानकारियों का ख़ज़ाना हो, मुझे एक बात बताओगे?’ 

‘पूछिए जहांपनाह! अगर बुद्धि काम करेगी तो ज़रूर बताऊंगा।’ बीरबल ने कहा। 

‘असल में, मैं आज तक नहीं समझ पाया कि मेरी हथेली पर बाल क्यों नहीं उगते, जबकि शरीर के अधिकांश हिस्से में किसी न किसी रूप में बाल मौजूद हैं, बस, मुझे अपनी हथेली देखकर हैरत होती है कि वहां बाल क्यों ग़ैर-हाज़िर हैं?’ अकबर ने सवाल किया। 

बीरबल ने शीघ्रता से कहा, ‘महाराज! इतनी-सी बात? मैं तो समझा था कि कोई मुश्किल सवाल आपको परेशान किए दे रहा है।’ ‘हां, बीरबल, इसी बात से परेशान हूं। तुम बताओ तो सही कि मेरी हथेली पर बाल क्यों नहीं हैं?’ अकबर ने व्यंग्य भाव से मुस्कराते हुए पूछा। 

‘जहांपनाह! आप दरियादिल बादशाह हैं। अपनी रियाया से आप बेइंतहां मुहब्बत करते हैं और उन्हें किसी तरह की परेशानी में देखना आपको मंजू़र नहीं, इसलिए जब कभी आपके द्वार पर कोई मुसीबत का मारा आता है तब आप उसकी मदद करते हैं। ज़रूरतमंदों को दान देते रहने के कारण आपकी हथेली घिस गई है, इसलिए उस पर बाल उग नहीं पाते।’ बीरबल ने कहा। 

अकबर ख़ुश हुए और अपनी सामान्य दिनचर्या में लग गए। बीरबल भी अपने काम में मग्न हो गए। कुछ दिन बीतने के बाद अकबर ने बीरबल से एक दिन अचानक ही पूछ लिया, ‘अरे, बीरबल! तुम्हारी हथेली पर भी तो बाल नहीं हैं? इसका मतलब है कि तुम भी दानी हो!’ 

बीरबल को इस बात का अंदेशा था कि कभी भी अकबर उनसे यह सवाल पूछ सकते हैं, इसलिए वे पहले से ही तैयार थे। उन्होंने छूटते ही कहा, ‘महाराज! मेरी हथेली पर बाल नहीं होने का कारण दान देना नहीं, दान लेना है। 

आप मुझे दरबार में छोटी-छोटी उलझनें सुलझाने का अवसर देते हैं और मेरे समाधान पर प्रसन्न होकर मुझे इनाम देते रहते हैं। आपसे इनाम लेते-लेेते मेरी हथेलियां भी घिस गई हैं और उन पर बाल उग ही नहीं पाते!’ 

अकबर बीरबल की इस हाज़िरजवाबी से बहुत ख़ुश हुए। इसके कुछ दिन बाद अपने दरबार में अकबर ने बीरबल से पूछ लिया, ‘बीरबल! तुमने मेरी हथेली और अपनी हथेली पर बाल नहीं होने का कारण तो बता दिया। 

आज तुम यह देखो कि मेरे दरबार में जितने भी दरबारी हैं, उनमें से किसी की हथेली पर बाल नहीं हैं, ऐसा क्यों है?’ बीरबल ने इस प्रश्न का उत्तर भी पहले से सोच रखा था। 

मुस्कराते हुए कहा, ‘जहांपनाह! सच्ची बात यह है कि दरबार में जब भी आप मुझे इनाम देते हैं, तब तमाम दरबारी हाथ मलने लगते हैं, क्योंकि उन्हें भी इनाम पाने की हसरत है। 

लेकिन हताशा में हाथ मलने के सिवा वे और कर भी क्या सकते हैं? इसीलिए, उनकी हथेली पर बाल नहीं उग पाते।’ इसके बाद अकबर ने बीरबल से हथेली के बाल के बारे में कभी भी कोई सवाल नहीं पूछा।

बीरबल की चतुराई के किस्से : बैंगन के गुण

‘बैंगन सिर्फ़ सब्ज़ी नहीं है, आपने ठीक कहा है जहांपनाह! बैंगन में इतने गुण हैं कि इसे औषधि का दर्ज़ा प्राप्त हो सकता है। 

सुखंडी रोग के पीड़ितों के लिए तो यह गुणकारी है ही, इसका इस्तेमाल करने से पाचन की समस्या सामने नहीं आती। अपने गुणों के कारण ही तो बैंगन के सिर पर प्राकृतिक रूप से ताज है।’ बीरबल बोल रहे थे। 

सामने अकबर बैठे थे। दस्तरख़्वान बिछा था। भोजन परोसा जा चुका था। भोजन में बैंगन का भर्ता भी शामिल था, जिसे देखकर अकबर ने प्रसन्न होते हुए कहा, ‘तबीयत ख़ुश हो गई! बड़े दिनों के बाद बैंगन का भर्ता परोसा गया है। 

मेरे लिए बैंगन सिर्फ़ सब्ज़ी नहीं है।’ इतना सुनते ही बीरबल हां में हां मिलाते हुए बैंगन की शान में कसीदे पढ़ने लगे थे। 

इस घटना के कुछ दिन बाद फिर अकबर और बीरबल को साथ खाने का अवसर मिला। संयोग की बात है कि उस दिन भी बैंगन की भाजी परोसी गई थी। 

बैंगन की भाजी अकबर को पसंद नहीं थी। उस पर नज़र पड़ते ही अकबर ख़ानसामे को बुलाकर डांटने लगे, ‘किसने कहा था तुम्हें बैंगन की भाजी बनाने को? यह भी कोई खाने की चीज़ है!’ 

खानसामा डर से थर-थर कांपने लगा। बीरबल ने स्थिति भांपते हुए खानसामे से कहा, ‘अब खड़े-खड़े मुंह क्या देख रहे हो? उठाओ यह बैंगन की भाजी! अब याद रखना, बैंगन ‘बादी’ होता है। इसे खाने से फोड़े-फुंसी की शिकायत होती है। खाज-खुजली बढ़ाना बैंगन का काम है। इसीलिए इसे बे-गुण भी कहते हैं।’ 

खानसामा बैंगन की भाजी वहां से उठाकर ले गया मगर बादशाह अकबर चकित दृष्टि से बीरबल को देखे जा रहे थे। 

बीरबल ने अकबर की ओर देखा, मानो कह रहे हों- जहांपनाह! अब तो भोजन करना आरम्भ करें। मगर अकबर ने खाना आरम्भ नहीं किया। 

उन्होंने बीरबल की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘बीरबल! तुम ज़बान के पक्के नहीं हो। अभी कुछ दिन पहले ही तो तुमने बैंगन के गुण गिनाए थे और आज मात्र बैंगन खाने के प्रति मेरी अनिच्छा प्रकट होने पर तुम्हें वही बैंगन बुरा लगने लगा!’ 

बीरबल ने अकबर की बातें गम्भीरता से सुनीं, फिर कहा, ‘जहांपनाह! मैं बैंगन का नहीं, आपका सेवक हूं और सेवक का धर्म है- मालिक की दृष्टि से चीज़ों को देखना। 

उस दिन बैंगन का भर्ता आपकी पसंद की चीज़ थी, तब मैंने उसके स्वाद के साथ उसके सद्‌गुणों की ओर देखा और आज जब बैंगन की भाजी परोसी गई, तब उसके प्रति आपकी नापसंदगी प्रकट हुई तब मैंने बैंगन के अवगुणों की ओर देखा। 

दरअसल जहांपनाह! उस दिन भी मैं आपकी दृष्टि से बैंगन को देख रहा था और आज भी आपकी ही दृष्टि से बैंगन को देखा।’ बीरबल का जवाब सुनकर अकबर संतुष्ट हो गए।

बीरबल बादशाह के चुटकुले

Majedar Chutkule: आजकल लोग काम में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि हंसना ही भूल जाते हैं लेकिन, हंसना सेहत के लिए और मन के लिए बहुत ही लाभदायक है. इसीलिए आज सारी परेशानियों को भूल जाइए और कमर कस के तैयार हो जाइए जोरदार हंसी हंसने के लिए.

> अकबर: बीरबल मुझे बताओ अपने स्टाफ में सबसे ज्यादा काम करने वाले को कैसे पहचानोगे?

बीरबल:  महाराज मैं सब को बुला लेता हूं फिर बताता हूं.

बीरबल सबको बुलाता है और 11वें का हाथ पकड़ कर कहता है महाराज यही है वो जिसने सबसे ज्यादा काम किया है.

अकबर:  तुमने कैसे पहचाना इसको?

बीरबल:  महाराज मैंने इसका मोबाइल चेक किया है इसके मोबाइल की बैटरी 98% है.

> बेटा:  पिताजी में बीएससी पास हो गया हूं. आगे पढ़ाई करके डॉक्टर बनूंगा और कोरोना की दवाई बनाऊंगा.

पिता:  भगवान से डर बेटा जिसके कारण बिना परीक्षा दिए पास हुआ है उसी के साथ विश्वासघात करने की सोच रहा है.

> मंटू अपनी मम्मी से कहता है मां खुशखबरी है हम दो से तीन हो गए.

मां: बधाई हो बेटा क्या हुआ है बेटा या बेटी ?

मंटू :ना बेटा और ना बेटी हुआ है मां , मैंने तो दूसरी शादी कर ली है.

> टीटू- यार सीटू आज सुबह-सुबह एक बिल्ली ने मेरा रास्ता काट दिया...

सीटू- अच्छा फिर क्या हुआ?

टीटू- फिर क्या आगे जाकर उस बिल्ली का एक्सीडेंट हो गया, हमसे पंगा जो ले लिया था.

> आजकल के होथियार बच्चे

पिता- नालायक, तू फिर फेल हो गया, आज से कभी मुझे पापा मत कहना. 

बेटा-ओह कमऑन डैड, स्कूल टेस्ट ही तो था, कोई डीएनए टेस्ट थोड़ी न था.

(डिस्क्लेमरः इस सेक्शन के लिए चुटकुले वॉट्सऐप व अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर शेयर हो रहे पॉपुलर कंटेंट से लिए गए हैं. इनका मकसद सिर्फ लोगों को थोड़ा हँसाना-गुदगुदाना है. किसी जाति, धर्म, मत, नस्ल, रंग या लिंग के आधार पर किसी का उपहास उड़ाना, उसे नीचा दिखाना या उसपर टीका-टिप्पणी करना हमारा उद्देश्य बिलकुल भी नहीं है.) 

Source : विकिपीडिया, Akbar and the Rise of the Mughal Empire

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