Kuldhara Village History in Hindi | Kuldhara in Jaisalmer

Kuldhara Village History in Hindi 》170 सालों से कुलधरा गाँव पड़ा है वीरान | Kuldhara Village of Rajasthan | Kuldhara heritage resort | Kuldhara haunted village in Jaisalmer 

राजस्थान में बहुत सारे मशहूर किले और ऐसी जगहें है, जिनका अपना इतिहास है। लेकिन इनमें से कुछ जगहें भूतिया और रहस्यमई भी है। 

ऐसा ही एक रहस्यमई गाँव है, कुलधरा, जैसलमेर। कहते है यह गाँव एक रात में ही वीरान हो गया था और अब भी पिछले 170 सालों से वीरान पड़ा है। आइए जानते है इस गाँव के रातों रात वीरान होने की दास्तान:

कुलधरा गाँव अभी भी भूतिया गाँव कहलाता है लेकिन अभी राजस्थान सरकार ने इसे पर्यटन स्थल का दर्जा दे दिया है,इस कारण अब यहां रोजाना हज़ारों की संख्या में देश एवं विदेश से पर्यटक आते रहते है।

Kuldhara Village History in Hindi

Kuldhara Haunted Village in Rajasthan Jaisalmer

कुलधरा या कुलधर (Kuldhara or Kuldhar) भारतीय राज्य राजस्थान के जैसलमेर ज़िले में स्थित है एक शापित और रहस्यमयी गाँव है जिसे भूतों का गाँव (Haunted Village) भी कहा जाता है। 

इस गाँव का निर्माण लगभग १३वीं शताब्दी में पालीवाल ब्राह्मणों ने किया था। लेकिन यह १९वीं शताब्दी में घटती पानी की आपूर्ति के कारण पूरा गाँव नष्ट हो गया ,लेकिन कुछ किवदंतियों के अनुसार इस गाँव का विनाश जैसलमेर के राज्य मंत्री सलीम सिंह के कारण हुआ था। 

सलीम सिंह जो जैसलमेर के एक मंत्री हुआ करते थे वो गाँव पर काफी शख्ती से पेश आता था इस कारण सभी ग्रामवासी लोग परेशान होकर रातोंरात गाँव छोड़कर चले गए साथ ही श्राप भी देकर चले गए इस कारण यह शापित गाँव भी कहलाता है।

कुलधरा गाँव अब एक टूरिस्ट प्लेस में बदल चूका है। यह गाँव जैसलमेर शहर से 17 किमी. दूरी पर मौजूद है। इस गाँव के आसपास 84 गांव थे और कुलधरा इन में से एक था। इस गाँव में पालीवाल ब्राह्मण रहते थे। इस गाँव के वीरान होने की 2 कहानियां प्रचलित है।

Kuldhara in Jaisalmer

Kuldhara Village History in Hindi किंवदन्ती

कुछ लोगों का मानना है कि यहां पानी की समस्या के कारण लोग गाँव छोड़कर नहीं गए बल्कि जैसलमेर राज्य के मंत्री सलीम सिंह के अत्याचार के कारण गए थे।

किंवदंतियों के अनुसार यहां पर काफी संख्या में लोग रहा करते थे जिसमें एक मुखिया भी हुआ करता था ,मुखिया की एक सुंदर पुत्री भी थी यह बात कुलधरा गाँव से बाहर निकली और जैसलमेर राज्य तक पहुंची। 

जब इसका पता सलीम सिंह को चला तो वह उस सुंदर कन्या पर रूप मोहित हो गया इस कारण उसने गाँव वालों पर दबाव बनाने लगा। 

सलीम सिंह चाहता था कि वह मुखिया की पुत्री से शादी करे लेकिन गाँव वाले कतई नहीं चाहते थे ब्राह्मण समाज का नाम छोटा पड़े। इस कारण गाँव के मुखिया ने एक रात सभा बुलाई और सभी ने फैसला लिया कि हम लोग रातों रात यह गाँव छोड़कर चले जाएंगे ,अन्यथा यह गाँव की कन्या से शादी कर देगा। 

फिर एक रात सभी गांववाले पूरा गाँव को छोड़कर किसी दूसरे गाँव में चले गए। लोगों का कहना है कि ये गाँव वाले जाते -जाते यह श्राप भी देकर गए थे कि यहाँ फिर कोई नहीं बस पायेगा इसलिए वर्तमान में यह राजस्थान के जैसलमेर का गाँव एक शापित गाँव कहलाता है।

आज भी है श्राप का असर

कहते है कि वहां आज भी रूहानी ताकतों का कब्ज़ा है। वहां कुछ लोगों ने बसने की कोशिश भी की थी, लेकिन वो असफल हो गए। 

गाँव में घूमने आने वाले लोगों के मुताबिक ब्राह्मणों की आहट आज भी सुनाई देती है और ऐसे लगता है कि साथ कोई और भी चल रहा है।

Kuldhara Village in Jaisalmer Location भौगोलिक स्थिति

यह स्थान (पूर्व ग्राम) जैसलमेर नगर से १८ किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यह गाँव ८६१ मी॰ x २६१ मी॰ के उत्तर-दक्षिण आयताकार क्षेत्र में फैला हुआ था। 

यह गाँव माता-रानी के मन्दिर को केन्द्र में रखकर उसके चारों और फैला हुआ था। इसमें तीन उत्तर-दक्षिण मार्ग थे जो विभिन्न स्थानों पर पूर्व-पश्चिम की पतली गलियों द्वारा मिलते थे।

इस स्थान की अन्य दीवारें उत्तर एवं दक्षिण से देखी जा सकती हैं। ग्राम के पूर्वी भाग में छोटी ककणी नदी के रूप में एक सूखी नदी है। पश्चिमी भाग मानव निर्मित कृतियों की दीवारों से सुरक्षित है।

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Kuldhara Village History in Hindi

कुलधरा गाँव की स्थापना

कुलधरा गाँव मूल रूप से पाली से जैसलमेर विस्थापित ब्राह्मणों द्वारा बसाया गया। पाली मूल के इन लोगों को पालीवाल कहा जाता है। लक्ष्मी चन्द द्वारा रचित १८९९ की इतिहास की पुस्तक तवारिख-ए-जैसलमेर के अनुसार कधान नामक पालीवाल ब्राह्मण कुलधरा गाँव में बसने वाला प्रथम व्यक्ति थे। उन्होंने गाँव में उधानसर नामक एक तालाब खोदा।

गाँव के खंडहरों के बीच विभिन्न देवलीयों (स्मारक पत्थर) सहित ३ श्मशान घाट हैं। देवली शिलालेखों के अनुसार, गाँव की स्थापना १३वीं सदी के पूर्वार्द्ध में हुई। ये शिलालेख भट्टिक संवत् (एक पंचांग पद्धति जो ६२३ ई॰ से आरम्भ होती है) में दिनांकित हैं और दो निवासियों के निधन के रूप में क्रमशः १२३५ ई॰ और १२३८ ई॰ अंकित हैं।

कुलधरा गाँव की जनसांख्यिकीय

गाँव में अब ४०० खण्डहर घर देखे जा सकते है, जिसमें अब वर्तमान में कोई नहीं रहता है किन्तु किंवदन्तियों के अनुसार यहाँ भूत रहते है। लक्ष्मी चन्द द्वारा रचित इतिहास ग्रन्थ तवारीख-ए-जैसलमेर (१८९९) जिसमें लिखा गया है कि यहां पालीवाल ब्राह्मण जाति के लोग रहते थे। 

जबकि ऱेजवी के मुताबिक यहाँ १७वीं १८ वीं शताब्दी में कुलधरा गाँव में तकरीबन १५८८ लोग रहते थे। एक ब्रिटिश अधिकारी जेम्स टॉड के अनुसार यहां की जनसंख्या १८१५ ईस्वी में कुल ८०० ही थी जिसमें २०० परिवार थे।

कुलधरा गाँव के सामाजिक समूह

वहां काफी अन्य देवाली अभिलेख ( अथवा शिलालेख) हैं। ये अभिलेख पालीवाली शब्द का उल्लेख नहीं करते। ये अभिलेख यहाँ के निवासियों को ब्राह्मण बताया हैं। काफी अभिलेख इन निवासियो को कुलधर या कलधर जाति का बताते हैं। ऐसा प्रतीत होता हैं कि पालीवाल ब्राह्मणों में कुलधर एक जाति समूह था, और इन्हीं के नाम पर गांव का नाम पड़ा।

कुछ अभिलेख इन निवासियों के जाति और गोत्र का भी उल्लेख करते हैं। अन्य जातियां जिनका अभिलेख में उल्लेख हैं, वें हैं - हरजल, हरजलु, हरजलुनी, मुगदल, जिसुतिया, लोहार्थी, लहठी, लखर, सहारन, जग, कलसर और महाजलार।

गोत्र जिनका उल्लेख हैं वें हैं, असमर, सुतधाना, गर्गवी, और गागो

एक अभिलेख गोनाली के रूप में एक ब्राह्मण के कुल (परिवार की वंशावली) का उल्लेख करता हैं। पालीवाल ब्राह्मण के आलावा एक अभिलेख दो सूत्रधार (शिल्पकार) का उल्लेख करता हैं, जिनका नाम धन्मग और सुजो गोपालना हैं। ये अभिलेख दर्शाते हैं कि, ब्राह्मण निवासी ब्राह्मण समाज में ही शादी (सगोत्री विवाह) करते थे, जबकि जातियां दूसरे गोत्र में विवाह करती थी।

कुलधरा गाँव की संस्कृति

धर्म 

कुलधरा गाँव के लोग वैष्णव धर्म के थे। इस गाँव का मुख्य मन्दिर विष्णु भगवान और महिषासुर मर्दिनी का है। हालाँकि ज्यादातर मूर्तियां गणेश जी की भी है जो प्रवेश द्वार पर प्रदर्शित है। 

गाँव के लोग विष्णु ,महिषासुर मर्दिनी और गणेश जी के अलावा बैल और स्थानीय घोड़े पर सवार देवता की भी पूजा करते थे।

वेशभूषा

कुलधरा गाँव में लोग जिसमें पुरुष लोग मुग़लिया अंदाज की पगड़ी अथवा साफा पहनते थे जबकि पजामा भी पहनते थे साथ ही कमर पर कमरबंध (belt) बांधते थे।

इनके अलावा कंधे पर अंगरखा (जो एक बड़ा परिधान होता है ,जिसे रुमाल भी कह सकते है) भी रखते थे। पुरुष लोग इन सब के अलावा गले में कुछ हार भी पहनते थे।

महिलाएं मुख्यतः लहँगे पहनती थी जबकि अंगरखा ये महिलाएं भी रखती थी, साथ ही गले में कुछ हार भी पहना करती थी।

कुलधरा की अर्थव्यवस्था

कुलधरा गाँव के लोग ज्यादातर कृषि का व्यापार ,बैंकरों का कार्य और किसान हुआ करते थे ,साथ ही मिट्टी के बर्तन भी बनाया करते थे ,ये अलंकृत बर्तनों का इस्तेमाल करते थे ,जो (fine clay) के बनाए जाते थे।

वे जलसंचय के लिए खड़ीन का इस्तेमाल करते थे जो एक कृत्रिम निचाई वाला हिस्सा होता था जिसके तीन ओर बाँध बना दिये जाते थे। जब खड़ीन का पानी सूख जाता तो पीछे बची मिट्टी ज्वार ,गेहूँ और चने की फसल के लिए अनुकूल होती। एक २.५ किलोमीटर लंबी और २ किलोमीटर चौड़ी खड़ीन कुलधरा के दक्षिण दिशा में मौजूद थी।

खेती करने में गाँव के लोग ककनी नदी या काकनी नदी (Kakni River) और कुछ कुओं से पानी सींचते थे।

ककनी नदी जो शाखाओं में विभाजित थीं ,एक जिसे "मसुरड़ी नदी" कहा जाता था ,और दूसरी जो कि एक नाली के रूप में थी। ककनी नदी जो कि एक मौसमी नदी है जब यह सूख जाती थी तब गाँव के लोग घरों से दूर बने कुओं से पानी लेकर आते थे। 

एक स्तम्भ शिलालेख से पता चलता है कि गाँव में तेजपाल नाम का एक ब्राह्मण हुआ करता था, जिसने एक बावड़ी का निर्माण करवाया था। यह ब्राह्मण कुलधरा गाँव का ही रहने वाला था।

Kuldhara Village of Rajasthan पर्यटन स्थल

पूर्व में इस गाँव में घूमने जाने के लिए के अनुमति नहीं थी ,क्योंकि इस गाँव को भूतिया गाँव कहा जाता है लोगों के अनुसार यहां भूत रहते है। 

लेकिन अभी राजस्थान सरकार ने यह दावा किया है कि यहाँ कोई भूत नहीं रहते है इसलिए सभी के लिए खोल दिया है और पर्यटन स्थल का दर्जा दिया गया है। 

इस कारण अब यहां हज़ारों की संख्या में लोग घूमने आते है। यहाँ स्थानीय लोग ही नहीं अपितु देश एवं विदेश से भी आते है।

Source : Wikipedia, rajasthantourism

Image credit : rajasthantourism

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2 टिप्पणियाँ

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