Maharishi Valmiki Biography "महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय"
Maharishi Valmiki Biography रामायण रचयिता महर्षि वाल्मीकि की प्रेरणादायक जीवनी व रोचक तथ्य : भारत ऋषि-मुनियों और संतों तथा महान पुरुषों का देश है। भारत की भूमि पर अनेक महावीर और पराक्रमीयों ने जन्म लेकर भारत की भूमि को गौरवान्वित किया है। भारत की विद्वता इसी बात से सिद्ध होती है कि भारत को सोने की चिड़िया और विश्व गुरु आदिनाम से भी जाना जाता है। यही कारण है कि भारत की शिक्षा , ज्ञान का अनुकरण देश-विदेश में किया जाता रहा है। आदिकाल से ही भारत – भूमि पर ऐसे ऐसे महाकाव्य अथवा ग्रंथों की रचना हुई है , जिसका कोई सानी नहीं है तथा उसके समानांतर कोई साहित्य भी नहीं है।
इस आर्टिकल में आप महर्षि वाल्मीकि का सम्पूर्ण जीवन परिचय जैसे महर्षि वाल्मीकि के जीवन से जुडी प्रेरणादायक घटना, महर्षि वाल्मीकि कौन थे उन्हें रामायण लिखने की प्रेरणा कैसे मिली, वाल्मीकि ने सबसे पहले श्लोक की रचना कैसे की, वाल्मीकि जयंती का महत्व व महर्षि वाल्मीकि जयंती कब व कैसे मनाई जाती है, सम्बंधित जानकारी इस पेज के अंत तक पढ़ सकते है |
महर्षि वाल्मीकि को प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों कि श्रेणी में प्रमुख स्थान प्राप्त है। वह संस्कृत भाषा के आदि कवि और हिन्दुओं के आदि काव्य ‘रामायण’ के रचयिता के रूप में प्रसिद्ध हैं।
महर्षि कश्यप और अदिति के नवम पुत्र वरुण (आदित्य ) से इनका जन्म हुआ। इनकी माता चर्षणी और भाई भृगु थे। वरुण का एक नाम प्रचेत भी है, इसलिए इन्हें प्राचेतस् नाम से उल्लेखित किया जाता है।
उपनिषद के विवरण के अनुसार यह भी अपने भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे।महर्षि वाल्मीकि का जन्म दिवस आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
महर्षि वाल्मीकि का नाम उनके कड़े तप के कारण पड़ा था। एक समय ध्यान में मग्न वाल्मीकि के शरीर के चारों ओर दीमकों ने अपना घर बना लिया। जब वाल्मीकि जी की साधना पूरी हुई तो वो दीमकों के घर से बाहर निकले। दीमकों के घर को वाल्मीकि कहा जाता हैं इसलिए ही महर्षि भी वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हुए।
मनुस्मृति के अनुसार प्रचेता, वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्य आदि भी इन्हीं के भाई थे।
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमःका अर्थ महर्षि वाल्मीकि की जीवनी वाल्मीकि ऋषि का इतिहास और बाल्यकाल रत्नाकर से वाल्मीकि तक का सफर महर्षि वाल्मीकि जयंती महोत्सव
राम चरित्र मानस मर्यादित समाज व आत्म संयम , परिवार व समाज निर्माण आदि की शिक्षा देता है। राम चरित्र मानस श्री राम के जीवन का महाकाव्य है। श्री राम अवतारी पुरुष होते हुए भी अपनी मर्यादा का कभी उल्लंघन नहीं करते। शक्ति संपन्न होते हुए भी अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कभी नहीं करते।
गुरु की आज्ञा व उनके प्रत्येक शब्दों का अक्षरसः पालन करते।
शक्ति सम्पन्न होते हुए भी उन्होंने एक छोटे – छोटे बानर – भालू की सेना के साथ पूरी राक्षस जाति का सर्वनाश किया। समुद्र पार करने के लिए उन्होंने तीन दिन तक समुद्र के समक्ष याचना की जबकि , उनके तरकस में ऐसे भी वाण थे जो पूरे समुद्र को सुखा सकते थे , फिर भी वह मर्यादा नहीं तोड़ते और समुद्र के समक्ष रास्ता मांगते रहे।
महर्षि वाल्मीकि का जन्म दिवस आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा सोलह कालों से युक्त होता है।
इसी दिन रावण अपनी नाभि में अमृत धारण करता था।
श्री कृष्ण ने इस दिन अपनी सोलह हजार रानियों संग एक साथ रास रचाया था।
कहा जाता है की वाल्मीकि ने रत्नाकर वन में कई वर्षों तक तप किया था, उनके शरीर पर चीटिंयों ने अपना घर भी बना लिया था। ऐसी कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने हौसले को गिरने नहीं दिया। हमें भी उनकी इस सीख से प्रेरणा लेते हुए, कैसी भी विषम परिस्थितियां आएं हमेशा अपनी बुद्धि और विवेक से उसका सामना करना चाहिए। | Maharishi Valmiki Biography In Hindi
महर्षि वाल्मीकि वैदिक काल के महान ऋषियों में माने जाते हैं।
वाल्मीकि जी संस्कृत भाषा के आदि कवि और आदि काव्य ‘रामायण’ के रचयिता के रूप में सुप्रसिद्ध हैं।
वाल्मीकि रामायण महाकाव्य की रचना करने के पश्चात आदिकवि कहलाए परन्तु वे एक ज्ञानी केवट थे,वे कोई ब्राह्मण नही थे, एक बार महर्षि वाल्मीक एक क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे। वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी उन्होंने देखा कि एक बहेलिये ने कामरत क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर महर्षि की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ा।
((निषाद)अरे बहेलिये, (यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्) तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं (मा प्रतिष्ठा त्वगमः) हो पायेगी)
जब भगवान वाल्मीकि बार-बार उस श्लोक के चिंतन में ध्यान मग्न थे, उसी समय प्रजापिता ब्रह्माजी मुनिश्रेष्ठ वाल्मीकि जी के आश्रम में आ पहुंचे।
मुनिश्रेष्ठ ने उनका सत्कार अभिवादन किया तब ब्रह्मा जी ने कहा,
‘‘हे मुनिवर! विधाता की इच्छा से ही महाशक्ति सरस्वती आपकी जिह्वा पर श्लोक बनकर प्रकट हुई हैं। इसलिए आप इसी छंद (श्लोक) में रघुवंशी श्री रामचंद्र जी के जीवन-चरित की रचना करें। संसार में जब तक इस पृथ्वी पर पहाड़ और नदियां रहेंगी तब तक यह रामायण कथा गाई और सुनाई जाएगी।
ऐसा काव्य ग्रंथ न पहले कभी हुआ है और न ही आगे कभी होगा।’’
न ते वागनृता काव्ये काचिदत्र भविष्यति।
भगवान वाल्मीकि जी ने संकल्प लिया कि अब मैं इसी प्रकार के छन्दों में रामायण काव्य की रचना करूंगा और वह ध्यानमग्न होकर बैठ गए। अपनी योग-साधना तथा तपोबल के प्रभाव से उन्होंने श्री रामचंद्र, सीता माता व अन्य पात्रों के सम्पूर्ण जीवन-चरित को प्रत्यक्ष देखते हुए रामायण महाकाव्य का निर्माण किया।
ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्य “रामायण” (जिसे कि “वाल्मीकि रामायण” के नाम से भी जाना जाता है) की रचना की और “आदिकवि वाल्मीकि” के नाम से अमर हो गये।
अपने महाकाव्य “रामायण” में अनेक घटनाओं के घटने के समय सूर्य, चंद्र तथा अन्य नक्षत्र की स्थितियों का वर्णन किया है।
इससे ज्ञात होता है कि वे ज्योतिष विद्या एवं खगोलविद्या के भी प्रकाण्ड पण्डित थे।
उनका आश्रम गंगा नदी के निकट बहने वाली तमसा नदी के किनारे पर था।
वाल्मीकि-रामायण में चौबीस हजार श्लोक हैं जिसके एक हजार श्लोकों के बाद गायत्री मंत्र के एक अक्षर का ‘सम्पुट’ लगा हुआ है, इसके सात कांड, सौ उपख्यान, पांच सौ सर्ग हैं जो ‘अनुष्टुप छंद’ में हैं। भगवान वाल्मीकि जी ने जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में हमें रामायण के भिन्न-भिन्न पात्रों के चरित्रों द्वारा अपनी रामायण कथा में साकार करके समझाया है। रामायण के नायक श्रीराम चंद्र जी हैं जिनके माध्यम से उन्होंने गृहस्थ धर्म, राज धर्म तथा प्रजाधर्म आदि का जो चित्र खींचा है, वह विलक्षण है।
पारिवारिक मर्यादाओं के लिए सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में वाल्मीकि रामायण से बढ़कर श्रेष्ठ ग्रंथ पृथ्वी पर कोई नहीं है।
उन्होंने सारे संसार के लिए युगों-युगों तक की मानव संस्कृति की स्थापना की है।
एक बार ध्यान में बैठे हुए वरुण-पुत्र के शरीर को दीमकों ने अपना घर बनाकर ढक लिया था। साधना पूरी करके जब यह दीमकों के घर, जिसे वाल्मीकि कहते हैं, से बाहर निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे।
वाल्मीकि रामायण में स्वयं वाल्मीकि कहते हैं कि वे प्रचेता के पुत्र हैं।
मनुस्मृति में प्रचेता को वशिष्ठ , नारद , पुलस्त्य आदि का भाई बताया गया है।
बताया जाता है कि प्रचेता का एक नाम वरुण भी है और वरुण ब्रह्माजी के पुत्र थे।
यह भी माना जाता है कि वाल्मीकि वरुण अर्थात् प्रचेता के 10वें पुत्र थे और उन दिनों के प्रचलन के अनुसार उनके भी दो नाम ‘अग्निशर्मा’ एवं ‘रत्नाकर’ थे।
किंवदन्ती है कि बाल्यावस्था में ही रत्नाकर को एक निःसंतान भीलनी ने चुरा लिया और प्रेमपूर्वक उनका पालन-पोषण किया। जिस वन प्रदेश में उस भीलनी का निवास था वहाँ का भील समुदाय वन्य प्राणियों का आखेट एवं दस्युकर्म करता था।
आदि कवी रामायण रचयिता महर्षि वाल्मीकि का जीवन बड़ा ही रोचक व प्रेरणादायक है। आइये आज इस लेख में हम जानें कि कैसे वे डाकू रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि बन गए और रामायण जैसे महाकाव्य की रचना कर डाली।
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तब नारद जी नें रत्नाकर से कहा की एक बार अपने परिवार वालों से पूछ लो, फिर में तुम्हें अपना सारा धन और आभूषण स्वेच्छा से अर्पण कर के यहाँ से चला जाऊंगा। रत्नाकर नें उसी वक्त अपने एक-एक स्वजन के पास जा कर, अपने पाप का भागीदार होने की बात पूछी। लेकिन किसी एक नें भी हामी नहीं भरी।
इस बात से डाकू रत्नाकर को बहुत दुख हुआ और आघात भी लगा।
इसी घटना से उसका हृदय परिवर्तन हो गया।
रत्नाकर नें इस प्रसंग के बाद पाप कर्म त्याग दिये और जप तप का मार्ग अपना लिया।
फिर कई वर्षों की कठिन तपस्या के फल स्वरूप उन्हे महर्षि पद प्राप्त हुआ।
महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर धर्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते है |
उत्तरी भारत में वाल्मीकि जयंती अवसर पर शोभा यात्रा सजाई जाती है |
स्कूलो, कॉलेजो व मंदिरों में वाल्मीकि जयंती पर मिठाई,फल व पकवान वितरित किए जाते है |
बहुत से क्षेत्रो में वाल्मीकि जयंती के उपलक्ष में भंडारे किए जाते है |
कार्यक्रम व सभाए आयोजित कर वाल्मीकि जी का जीवन परिचय बताकर, बुरे कर्म छोड़कर सत्कर्म अपनाने के लिए प्रेरणा ली जाती है |
वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना करके हर किसी को सद्मार्ग पर चलने की राह दिखाई।
इस अवसर पर वाल्मीकि मंदिर में पूजा अर्चना भी की जाती है तथा शोभायात्रा के दौरान मार्ग में जगह-जगह के लोग इसमें बडे़ उत्साह के साथ भाग लेते हैं। झांकियों के आगे उत्साही युवक झूम-झूम कर महर्षि वाल्मीकि के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। महर्षि वाल्मीकि को याद करते हुए इस अवसर पर उनके जीवन पर आधारित झांकियां निकाली जाती हैं व राम भजन होता है।
भारतीय संस्कृति के सत्य स्वरूप का गुणगान करने, जीवन का अर्थ समझाने, व्यवहार की शिक्षा से ओत-प्रोत ‘वाल्मीकि-रामायण’ एक महान् आदर्श ग्रंथ है। उसमें भारतीय संस्कृति का स्वरूप कूट-कूट कर भरा है। आदिकवि भगवान वाल्मीकि जी ने श्रीराम चंद्र जी के समस्त जीवन-चरित को हाथ में रखे हुए आंवले की तरह प्रत्यक्ष देखा और उनके मुख से वेद ही रामायण के रूप में अवतरित हुए।
वेद: प्राचेतसादासीत् साक्षाद् रामायणात्मना॥
‘रामायण कथा’ की रचना भगवान वाल्मीकि जी के जीवन में घटित एक घटना से हुई।
” मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥”
इस श्लोक के माध्यम से महर्षि वाल्मीकि ने क्रौंच का शिकार करने वाले व्यक्ति को श्राप दिया।
यह श्लोक महर्षि के मन मस्तिष्क में सदैव गुंजायमान रहा क्योंकि उन्होंने आज से पूर्व उन्होंने इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग नहीं किया था। जब प्रत्येक शब्द का गणना किया गया तो 8-8 अक्षरों से यह छंद बंद हो गया। जिसे लय दिया जाना सुलभ हो गया। इसको गाया जा सकता था और उच्च स्वर में वाचन भी किया जा सकता था। महर्षि को यह ज्ञात था कि उन्हें राम के जीवन पर महाकाव्य की रचना करनी है। उन्हें रचना करने की विधि ज्ञात नहीं थी , इस छंद के माध्यम से उन्होंने पूरे महाकाव्य की रचना ब्रह्मा जी के मार्गदर्शन से की।
ब्रह्मा जी ने स्वयं महर्षि बाल्मीकि को आश्रम में प्रकट होकर उन्हें राम – सीता केजीवन में होने वाले घटनाओं को करुण रस में लिखने को कहा।
इससे पूर्व अनेक रसों में यह घटना घट चुकी थी , आगे की घटना करुण रस प्रधान थी।
जिसमें सीता-राम के विरह की वर्णन को जीवंत रूप देना था।
आगे की सभी घटनाएं बिरह अवस्था में व्यतीत करनी थी , जिसमें करुण रस की प्रधानता थी।
इस करुण रस में भी उन्होंने मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया।
सीताराम ने कभी भी अपने मर्यादा का अतिक्रमण नहीं किया कितनी ही परिस्थितियां उनके विपरीत रही।
महर्षि वाल्मीकि - जिन्होंने रामायण की रचना करके मानव समाज को जीवन का मूल मन्त्र दिया महर्षि वाल्मीकि - संपूर्ण मानव जाति के हित में रामायण तथा योगावशिष्ठ यह दो महान ग्रंथ रचकर महर्षि बाल्मीकि अनंत काल तक अमरता पा गए हैं। 24000 श्लोकों में उनके द्वारा निबंध श्री…" "महर्षि वाल्मीकि | जिन्होंने रामायण की रचना करके मानव समाज को जीवन का मूल मन्त्र दिया\
इस आर्टिकल में आप महर्षि वाल्मीकि का सम्पूर्ण जीवन परिचय जैसे महर्षि वाल्मीकि के जीवन से जुडी प्रेरणादायक घटना, महर्षि वाल्मीकि कौन थे उन्हें रामायण लिखने की प्रेरणा कैसे मिली, वाल्मीकि ने सबसे पहले श्लोक की रचना कैसे की, वाल्मीकि जयंती का महत्व व महर्षि वाल्मीकि जयंती कब व कैसे मनाई जाती है, सम्बंधित जानकारी इस पेज के अंत तक पढ़ सकते है |
महर्षि वाल्मीकि को प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों कि श्रेणी में प्रमुख स्थान प्राप्त है। वह संस्कृत भाषा के आदि कवि और हिन्दुओं के आदि काव्य ‘रामायण’ के रचयिता के रूप में प्रसिद्ध हैं।
महर्षि कश्यप और अदिति के नवम पुत्र वरुण (आदित्य ) से इनका जन्म हुआ। इनकी माता चर्षणी और भाई भृगु थे। वरुण का एक नाम प्रचेत भी है, इसलिए इन्हें प्राचेतस् नाम से उल्लेखित किया जाता है।
उपनिषद के विवरण के अनुसार यह भी अपने भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे।महर्षि वाल्मीकि का जन्म दिवस आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
महर्षि वाल्मीकि का नाम उनके कड़े तप के कारण पड़ा था। एक समय ध्यान में मग्न वाल्मीकि के शरीर के चारों ओर दीमकों ने अपना घर बना लिया। जब वाल्मीकि जी की साधना पूरी हुई तो वो दीमकों के घर से बाहर निकले। दीमकों के घर को वाल्मीकि कहा जाता हैं इसलिए ही महर्षि भी वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हुए।
मनुस्मृति के अनुसार प्रचेता, वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्य आदि भी इन्हीं के भाई थे।
महर्षि वाल्मीकि जीवन परिचय ( Maharshi Valmiki Jeevan Parichay)
नाम | महर्षि वाल्मीकि |
वास्तविक नाम | रत्नाकर |
पिता का नाम | प्रचेता |
माता का नाम | चर्षणी |
जन्म दिवस | आश्विन पूर्णिमा |
पेशा | डाकू, महाकवि |
रचना | रामायण, योगविशिष्ठ, अक्षर-लक्ष्य |
महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय
महर्षि वाल्मीकि भी एक विद्वान पंडित के रूप में प्रतिष्ठित हैं। जिन्हें अकस्मात ज्ञान की देवीसरस्वती की कृपा प्राप्त होती है और संस्कृत के श्लोक उनके जिह्वासे प्रस्फुट होने लगती है। ब्रह्मा जी के आग्रह पर बाल्मीकि जी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन से जुड़ा महाकाव्य लिखने के लिए प्रेरित होते हैं। उन्होंने संस्कृत के श्लोकों से राम चरित्र मानस नामक ग्रंथ की रचना की जो देश ही नहीं अपितु विदेश में भी पढ़ा जाता है।राम चरित्र मानस मर्यादित समाज व आत्म संयम , परिवार व समाज निर्माण आदि की शिक्षा देता है। राम चरित्र मानस श्री राम के जीवन का महाकाव्य है। श्री राम अवतारी पुरुष होते हुए भी अपनी मर्यादा का कभी उल्लंघन नहीं करते। शक्ति संपन्न होते हुए भी अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कभी नहीं करते।
गुरु की आज्ञा व उनके प्रत्येक शब्दों का अक्षरसः पालन करते।
शक्ति सम्पन्न होते हुए भी उन्होंने एक छोटे – छोटे बानर – भालू की सेना के साथ पूरी राक्षस जाति का सर्वनाश किया। समुद्र पार करने के लिए उन्होंने तीन दिन तक समुद्र के समक्ष याचना की जबकि , उनके तरकस में ऐसे भी वाण थे जो पूरे समुद्र को सुखा सकते थे , फिर भी वह मर्यादा नहीं तोड़ते और समुद्र के समक्ष रास्ता मांगते रहे।
महर्षि वाल्मीकि का जन्म दिवस आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा सोलह कालों से युक्त होता है।
इसी दिन रावण अपनी नाभि में अमृत धारण करता था।
श्री कृष्ण ने इस दिन अपनी सोलह हजार रानियों संग एक साथ रास रचाया था।
वाल्मीकि नाम कैसे पड़ा? :
तप करते समय दीमकों ने इनके ऊपर अपनी बांबी बना ली थी. तपस्या समाप्त होने पर जब ये दीमक की बांबी जिसे ‘वाल्मीकि’ भी कहते हैं, तोड़कर निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे.महाकाव्य रामायण लिखने की प्रेरणा :
पाप कर्म में लिप्त रत्नाकर को हृदय परवर्तन होने पर नारद जी नें राम नाम जपने की सलाह दी थी। तब रत्नाकर समाधि में बैठ कर राम नाम जप करते करते गलती से मरा-मरा जप करने लगे। इसी कारण उनका देह दुर्बल होता चला गया। उनके शरीर पर चीटीयां रेंगने लगी। यह सब उनके पूर्व समय के पाप कर्मों का भुगतान था। घोर तपस्या के बाद जब उनहोंनें ब्रह्माजी को प्रसन्न किया तब स्वयं ब्रह्मा जी नें वाल्मीकि को रामायण महाकाव्य लिखने की प्रेरणा दी।महर्षि वाल्मीकि मंदिर (Maharishi Valmiki Temple at Thiruvanmiyur) :
चेन्नई के एक क्षेत्र तिरुवंमियुर का नाम उन्ही के नाम साधू वाल्मीकि, थिरु वाल्मीकि ऊर पर ही रखा गया है। इस जगह पर वाल्मीकि का एक मंदिर भी है, माना जाता है की वह मंदिर 1300 साल पुराना है। भारत में वाल्मीकि को श्लोको का जनक भी माना जाता है, कहा जाता है की श्लोक लिखने की शुरुवात उन्ही ने की थी।कहा जाता है की वाल्मीकि ने रत्नाकर वन में कई वर्षों तक तप किया था, उनके शरीर पर चीटिंयों ने अपना घर भी बना लिया था। ऐसी कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने हौसले को गिरने नहीं दिया। हमें भी उनकी इस सीख से प्रेरणा लेते हुए, कैसी भी विषम परिस्थितियां आएं हमेशा अपनी बुद्धि और विवेक से उसका सामना करना चाहिए। | Maharishi Valmiki Biography In Hindi
वाल्मीकि ऋषि परिचय
वाल्मीकि ऋषि वैदिक काल के महान ऋषि बताए जाते हैं। धार्मिक ग्रंथ और पुराण अनुसार वाल्मीकि नें कठोर तप अनुष्ठान सिद्ध कर के महर्षि पद प्राप्त किया था। परमपिता ब्रह्मा जी की प्रेरणा और आशीर्वाद पा कर वाल्मीकि ऋषि नें भगवान श्री राम के जीवनचरित्र पर आधारित महाकाव्य रामायण की रचना की थी। ऐतिहासिक तथ्यों के मतानुसार आदिकाव्य श्रीमद वाल्मीकि रामायण जगत का सर्वप्रथम काव्य था।महर्षि वाल्मीकि नें महाकाव्य रामायण की रचना संस्कृत भाषा में की थी।महर्षि वाल्मीकि वैदिक काल के महान ऋषियों में माने जाते हैं।
वाल्मीकि जी संस्कृत भाषा के आदि कवि और आदि काव्य ‘रामायण’ के रचयिता के रूप में सुप्रसिद्ध हैं।
वाल्मीकि रामायण महाकाव्य की रचना करने के पश्चात आदिकवि कहलाए परन्तु वे एक ज्ञानी केवट थे,वे कोई ब्राह्मण नही थे, एक बार महर्षि वाल्मीक एक क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे। वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी उन्होंने देखा कि एक बहेलिये ने कामरत क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर महर्षि की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ा।
” मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥”
जब भगवान वाल्मीकि बार-बार उस श्लोक के चिंतन में ध्यान मग्न थे, उसी समय प्रजापिता ब्रह्माजी मुनिश्रेष्ठ वाल्मीकि जी के आश्रम में आ पहुंचे।
मुनिश्रेष्ठ ने उनका सत्कार अभिवादन किया तब ब्रह्मा जी ने कहा,
‘‘हे मुनिवर! विधाता की इच्छा से ही महाशक्ति सरस्वती आपकी जिह्वा पर श्लोक बनकर प्रकट हुई हैं। इसलिए आप इसी छंद (श्लोक) में रघुवंशी श्री रामचंद्र जी के जीवन-चरित की रचना करें। संसार में जब तक इस पृथ्वी पर पहाड़ और नदियां रहेंगी तब तक यह रामायण कथा गाई और सुनाई जाएगी।
ऐसा काव्य ग्रंथ न पहले कभी हुआ है और न ही आगे कभी होगा।’’
न ते वागनृता काव्ये काचिदत्र भविष्यति।
भगवान वाल्मीकि जी ने संकल्प लिया कि अब मैं इसी प्रकार के छन्दों में रामायण काव्य की रचना करूंगा और वह ध्यानमग्न होकर बैठ गए। अपनी योग-साधना तथा तपोबल के प्रभाव से उन्होंने श्री रामचंद्र, सीता माता व अन्य पात्रों के सम्पूर्ण जीवन-चरित को प्रत्यक्ष देखते हुए रामायण महाकाव्य का निर्माण किया।
ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्य “रामायण” (जिसे कि “वाल्मीकि रामायण” के नाम से भी जाना जाता है) की रचना की और “आदिकवि वाल्मीकि” के नाम से अमर हो गये।
अपने महाकाव्य “रामायण” में अनेक घटनाओं के घटने के समय सूर्य, चंद्र तथा अन्य नक्षत्र की स्थितियों का वर्णन किया है।
इससे ज्ञात होता है कि वे ज्योतिष विद्या एवं खगोलविद्या के भी प्रकाण्ड पण्डित थे।
उनका आश्रम गंगा नदी के निकट बहने वाली तमसा नदी के किनारे पर था।
वाल्मीकि-रामायण में चौबीस हजार श्लोक हैं जिसके एक हजार श्लोकों के बाद गायत्री मंत्र के एक अक्षर का ‘सम्पुट’ लगा हुआ है, इसके सात कांड, सौ उपख्यान, पांच सौ सर्ग हैं जो ‘अनुष्टुप छंद’ में हैं। भगवान वाल्मीकि जी ने जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में हमें रामायण के भिन्न-भिन्न पात्रों के चरित्रों द्वारा अपनी रामायण कथा में साकार करके समझाया है। रामायण के नायक श्रीराम चंद्र जी हैं जिनके माध्यम से उन्होंने गृहस्थ धर्म, राज धर्म तथा प्रजाधर्म आदि का जो चित्र खींचा है, वह विलक्षण है।
पारिवारिक मर्यादाओं के लिए सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में वाल्मीकि रामायण से बढ़कर श्रेष्ठ ग्रंथ पृथ्वी पर कोई नहीं है।
उन्होंने सारे संसार के लिए युगों-युगों तक की मानव संस्कृति की स्थापना की है।
एक बार ध्यान में बैठे हुए वरुण-पुत्र के शरीर को दीमकों ने अपना घर बनाकर ढक लिया था। साधना पूरी करके जब यह दीमकों के घर, जिसे वाल्मीकि कहते हैं, से बाहर निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे।
वाल्मीकि रामायण में स्वयं वाल्मीकि कहते हैं कि वे प्रचेता के पुत्र हैं।
मनुस्मृति में प्रचेता को वशिष्ठ , नारद , पुलस्त्य आदि का भाई बताया गया है।
बताया जाता है कि प्रचेता का एक नाम वरुण भी है और वरुण ब्रह्माजी के पुत्र थे।
यह भी माना जाता है कि वाल्मीकि वरुण अर्थात् प्रचेता के 10वें पुत्र थे और उन दिनों के प्रचलन के अनुसार उनके भी दो नाम ‘अग्निशर्मा’ एवं ‘रत्नाकर’ थे।
किंवदन्ती है कि बाल्यावस्था में ही रत्नाकर को एक निःसंतान भीलनी ने चुरा लिया और प्रेमपूर्वक उनका पालन-पोषण किया। जिस वन प्रदेश में उस भीलनी का निवास था वहाँ का भील समुदाय वन्य प्राणियों का आखेट एवं दस्युकर्म करता था।
आदि कवी रामायण रचयिता महर्षि वाल्मीकि का जीवन बड़ा ही रोचक व प्रेरणादायक है। आइये आज इस लेख में हम जानें कि कैसे वे डाकू रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि बन गए और रामायण जैसे महाकाव्य की रचना कर डाली।
वाल्मीकि ऋषि का इतिहास और बाल्यकाल –
माना जता है कि वाल्मीकि जी महर्षि कश्यप और अदिति के नौंवे पुत्र प्रचेता की संतान हैं. उनकी माता का नाम चर्षणी और भाई का नाम भृगु था. बचपन में उन्हे एक भील चुरा ले गया था। जिस कारण उनका लालन-पालन भील प्रजाति में हुआ। इसी कारण वह बड़े हो कर एक कुख्यात डाकू – डाकू रत्नाकर बने और उन्होंने जंगलों में निवास करते हुए अपना काफी समय बिताया।यह भी जरूर पढियेगा

डाकू रत्नाकर से महर्षि बाल्मीकि बनने की कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि बाल्मीकि का पहले नाम रत्नाकर था । एक बार नारद मुनि एक जंगल से होकर गुजर रहे थे कि उनका सामना डाकू रत्नाकर से हो गया। भील प्रजाति में पले-बढ़े रत्नाकर राजा के राज्य में सैनिक हुआ करते थे। साथी सैनिकों का युद्ध बंदियों के साथ अच्छा आचरण न होने के कारण रत्नाकर ने विद्रोह किया। इस विद्रोह में उनके राजा ने सीधी शत्रुता मोल ली और रत्नाकर को दंड देने के लिए घोषणा की जिसके कारण उन्हें जनगण में छिपकर रहना पड़ा। अपने आजीविका चलने के लिए उन्हें राहगीरों से लूटपाट करना पड़ता था। यही उनके नाम के पहले डाकू शब्द लगने का कारण था। डाकू रत्नाकर लोगों को लूट कर अपना गुजारा चलाते थे। कई बार वह लोगों की हत्या भी कर देते थे। इसी पाप कर्म में लिप्त रत्नाकर जब एक बार जंगल में किसी नए शिकार की खोज में थे तब उनका सामना मुनिवर नारदजी से हुआ। रत्नाकर नें लूटपाट के इरादे से नारद मुनि को बंदी बना लिया। तब नारदजी नें उन्हे रोकते हुए केवल एक सवाल पूछा, “यह सब पाप कर्म तुम क्यों कर रहे हो?” इस सवाल के उत्तर में रत्नाकर नें कहा कि ह यह सब अपने स्वजनों के लिए कर रहा है।
तब नारद मुनि बोले – “क्या तुम्हारे इस पाप कर्म के फल भुगतानमें भी तुम्हारे परिवारजन तुम्हारे हिस्सेदार बनेंगे?” इस पर रत्नाकर नें बिना सोचे ‘हां’ बोल दिया।तब नारद जी नें रत्नाकर से कहा की एक बार अपने परिवार वालों से पूछ लो, फिर में तुम्हें अपना सारा धन और आभूषण स्वेच्छा से अर्पण कर के यहाँ से चला जाऊंगा। रत्नाकर नें उसी वक्त अपने एक-एक स्वजन के पास जा कर, अपने पाप का भागीदार होने की बात पूछी। लेकिन किसी एक नें भी हामी नहीं भरी।
इस बात से डाकू रत्नाकर को बहुत दुख हुआ और आघात भी लगा।
इसी घटना से उसका हृदय परिवर्तन हो गया।
रत्नाकर नें इस प्रसंग के बाद पाप कर्म त्याग दिये और जप तप का मार्ग अपना लिया।
फिर कई वर्षों की कठिन तपस्या के फल स्वरूप उन्हे महर्षि पद प्राप्त हुआ।
महर्षि वाल्मीकि जयंती कब मनाई जाती है ( Valmiki Jayanti Date )
रामायण रचियता महर्षि वाल्मीकि का जन्म हुआ था | और पुरे भारत में हर वर्ष वाल्मीकि जयंती आश्विनी मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है | अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार इस वर्ष Maharshi Valamiki Jayanti 2019 October 13 को मनाई जावेगी |वाल्मीकि जयंती का महत्व
महर्षि वाल्मीकि आदि कवी थे और इन्हें श्लोको का जन्मदाता माना जाता है | क्योकि महर्षि वाल्मीकि जी ने ही प्रथम संस्कृत श्लोक व महाकाव्य की रचना की थी | इसलिए महर्षि वाल्मीकि जी के जन्मोत्सव को वाल्मीकि जयंती के रूप में मनाया जाता है | महर्षि वाल्मीकि जयंती को अन्य शब्दों में प्रकट दिवस के रूप में भी जाना जाता हैCelebration of Maharshi Valmiki Jayanti
पुरे भारत वर्ष में महर्षि वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है | मुख्यत: भारत के उत्तर क्षेत्र में शोभा यात्रा निकालकर धूम-धाम से मनाई जाती है |महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर धर्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते है |
उत्तरी भारत में वाल्मीकि जयंती अवसर पर शोभा यात्रा सजाई जाती है |
स्कूलो, कॉलेजो व मंदिरों में वाल्मीकि जयंती पर मिठाई,फल व पकवान वितरित किए जाते है |
बहुत से क्षेत्रो में वाल्मीकि जयंती के उपलक्ष में भंडारे किए जाते है |
कार्यक्रम व सभाए आयोजित कर वाल्मीकि जी का जीवन परिचय बताकर, बुरे कर्म छोड़कर सत्कर्म अपनाने के लिए प्रेरणा ली जाती है |
महर्षि वाल्मीकि जयंती महोत्सव
देश भर में महर्षि वाल्मीकि की जयंती को श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर शोभायात्राओं का आयोजन भी होता है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित पावन ग्रंथ रामायण में प्रेम, त्याग, तप व यश की भावनाओं को महत्व दिया गया है।वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना करके हर किसी को सद्मार्ग पर चलने की राह दिखाई।
इस अवसर पर वाल्मीकि मंदिर में पूजा अर्चना भी की जाती है तथा शोभायात्रा के दौरान मार्ग में जगह-जगह के लोग इसमें बडे़ उत्साह के साथ भाग लेते हैं। झांकियों के आगे उत्साही युवक झूम-झूम कर महर्षि वाल्मीकि के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। महर्षि वाल्मीकि को याद करते हुए इस अवसर पर उनके जीवन पर आधारित झांकियां निकाली जाती हैं व राम भजन होता है।
भारतीय संस्कृति के सत्य स्वरूप का गुणगान करने, जीवन का अर्थ समझाने, व्यवहार की शिक्षा से ओत-प्रोत ‘वाल्मीकि-रामायण’ एक महान् आदर्श ग्रंथ है। उसमें भारतीय संस्कृति का स्वरूप कूट-कूट कर भरा है। आदिकवि भगवान वाल्मीकि जी ने श्रीराम चंद्र जी के समस्त जीवन-चरित को हाथ में रखे हुए आंवले की तरह प्रत्यक्ष देखा और उनके मुख से वेद ही रामायण के रूप में अवतरित हुए।
वेद: प्राचेतसादासीत् साक्षाद् रामायणात्मना॥
‘रामायण कथा’ की रचना भगवान वाल्मीकि जी के जीवन में घटित एक घटना से हुई।
” मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥”
इस श्लोक के माध्यम से महर्षि वाल्मीकि ने क्रौंच का शिकार करने वाले व्यक्ति को श्राप दिया।
यह श्लोक महर्षि के मन मस्तिष्क में सदैव गुंजायमान रहा क्योंकि उन्होंने आज से पूर्व उन्होंने इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग नहीं किया था। जब प्रत्येक शब्द का गणना किया गया तो 8-8 अक्षरों से यह छंद बंद हो गया। जिसे लय दिया जाना सुलभ हो गया। इसको गाया जा सकता था और उच्च स्वर में वाचन भी किया जा सकता था। महर्षि को यह ज्ञात था कि उन्हें राम के जीवन पर महाकाव्य की रचना करनी है। उन्हें रचना करने की विधि ज्ञात नहीं थी , इस छंद के माध्यम से उन्होंने पूरे महाकाव्य की रचना ब्रह्मा जी के मार्गदर्शन से की।
ब्रह्मा जी ने स्वयं महर्षि बाल्मीकि को आश्रम में प्रकट होकर उन्हें राम – सीता केजीवन में होने वाले घटनाओं को करुण रस में लिखने को कहा।
इससे पूर्व अनेक रसों में यह घटना घट चुकी थी , आगे की घटना करुण रस प्रधान थी।
जिसमें सीता-राम के विरह की वर्णन को जीवंत रूप देना था।
आगे की सभी घटनाएं बिरह अवस्था में व्यतीत करनी थी , जिसमें करुण रस की प्रधानता थी।
इस करुण रस में भी उन्होंने मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया।
सीताराम ने कभी भी अपने मर्यादा का अतिक्रमण नहीं किया कितनी ही परिस्थितियां उनके विपरीत रही।
महर्षि वाल्मीकि - जिन्होंने रामायण की रचना करके मानव समाज को जीवन का मूल मन्त्र दिया महर्षि वाल्मीकि - संपूर्ण मानव जाति के हित में रामायण तथा योगावशिष्ठ यह दो महान ग्रंथ रचकर महर्षि बाल्मीकि अनंत काल तक अमरता पा गए हैं। 24000 श्लोकों में उनके द्वारा निबंध श्री…" "महर्षि वाल्मीकि | जिन्होंने रामायण की रचना करके मानव समाज को जीवन का मूल मन्त्र दिया\