मोरारजी देसाई की जीवनी | Morarji Desai Biography in hindi

मोरारजी देसाई भारत के स्वाधीनता सेनानी और देश के छ्ठे प्रधानमंत्री थे। वह पहले गैर कांग्रेसी प्रथम प्रधानमंत्री थे। 81 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बनने वाले मोरारजी एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ एवं पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान ‘निशान-ए-पाकिस्तान’ से सम्मानित किया गया है। प्रधानमंत्री बनने से पहले वो भारत सरकार में उप-प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रलयों का कारभार संभल चुके थे। मोरारजी बॉम्बे राज्य के मुख्यमंत्री भी रह चुके थे। उनको भारत और पाकिस्तान के मध्य शांति स्थापित करने के प्रयासों के लिए भी जाना जाता है। सन 1974 में भारत के प्रथम नाभिकीय परिक्षण के बाद उन्होंने पाकिस्तान और चीन के साथ मित्रता बहाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी ‘रॉ’ को भी बंद करने की कोशिश की।

मोरारजी देसाई का जीवन परिचय | Biography of Morarji Desai

पूरा नाम             – मोरारजी रणछोड़जी देसाई(भारत के चौथे प्रधानमंत्री)
जन्म                   – 29 फरवरी 1896
मृत्यु                    –  10 अप्रैल 1995 (दिल्ली)
जन्मस्थान           – भदेली ग्राम, बम्बई प्रेसिडेंसी
पिता                   – रणछोड़जी देसाई
माता                   – वाजियाबेन देसाई
विवाह                 – 1911 में सिर्फ 15 वर्ष की आयु में ही जराबेन से हुआ।
राष्ट्रियता            –  भारतीय
राजनैतिक दल    – जनता पार्टी

मोरारजी देसाई प्रारंभिक जीवन

मोरारजी देसाई का जन्म 29 फ़रवरी 1896 को गुजरात के वल्साद जिले के भदेली गाँव में हुआ था। उनका संबंध एक ब्राह्मण परिवार से था।इनका पारिवारिक जीवन बहुत कठिनाइयों से गुजरा, इनके 8 भाई बहन थे, जिसमें देसाई जी सबसे बड़े थे. उनके पिता रणछोड़जी देसाई भावनगर (सौराष्ट्र) में एक स्कूल अध्यापक थे। वह अवसाद (निराशा एवं खिन्नता) से ग्रस्त रहते थे,  बड़ा परिवार होने के कारण देसाई जी के परिवार को आर्थिक परेशानियों से गुजरना पड़ा. इन्ही सब बातों से परेशान देसाई जी के पिता ने आत्महत्या कर ली थी, जिस बात से देसाई जी बहुत परेशान हुए, यह समय उनके पुरे परिवार के लिए कठिन था. परन्तु वो हालात के आगे कमज़ोर नहीं अपितु ज्यादा मजबूत हो गये. 16 वर्ष की आयु में 1911 में इनका विवाह गुजराबेन से हो गया.। बचपन से ही युवा मोरारजी ने अपने पिता से सभी परिस्थितियों में कड़ी मेहनत करने एवं सच्चाई के मार्ग पर चलने की सीख ली।

मोरारजी देसाई शिक्षा-दीक्षा

मोरारजी देसाई सेंट बुसर हाई स्कूल से शिक्षा प्राप्त की एवं अपनी मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। आगे की शिक्षा-दीक्षा मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज में हुई जो उस समय काफ़ी महंगा और खर्चीला माना जाता था। मुंबई में मोरारजी देसाई नि:शुल्क आवास गृह में रहे जो गोकुलदास तेजपाल के नाम से प्रसिद्ध था। एक समय में वहाँ 40 शिक्षार्थी रह सकते थे। विद्यार्थी जीवन में मोरारजी देसाई औसत बुद्धि के विवेकशील छात्र थे। इन्हें कॉलेज की वाद-विवाद टीम का सचिव भी बनाया गया था लेकिन स्वयं मोरारजी ने मुश्किल से ही किसी वाद-विवाद प्रतियोगिता में हिस्सा लिया होगा। मोरारजी देसाई ने अपने कॉलेज जीवन में ही महात्मा गाँधी, बाल गंगाधर तिलक और अन्य कांग्रेसी नेताओं के संभाषणों को सुना था। तत्कालीन बंबई प्रांत के विल्सन सिविल सेवा से 1918 में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने बाद उन्होंने बारह वर्षों तक डिप्टी कलेक्टर के रूप में कार्य किया।

मोरारजी देसाई स्वाधीनता आन्दोलन 

सन 1927-28 के दौरान गोधरा में हुए दंगों में उनपर पक्षपात का आरोप लगा तथा 1930 में जब भारत में महात्मा गाँधी द्वारा शुरू किया गया आजादी के लिए संघर्ष अपने मध्य में था, श्री देसाई का ब्रिटिश न्याय व्यवस्था में विश्वास खो चुका था, इसलिए उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर आजादी की लड़ाई में भाग लेने का निश्चय किया। यह एक कठिन निर्णय था लेकिन श्री देसाई ने महसूस किया कि यह देश की आजादी का सवाल था, परिवार से संबंधित समस्याएं बाद में आती हैं, देश पहले आता है।जिसके स्वरुप उन्होंने सन 1930 में गोधरा के डिप्टी कलेक्टर के पद से इस्तीफा दे दिया। सरकारी नौकरी छोड़ने का बाद मोरारजी देसाई स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पड़े। 

1930 में, देसाई जी, स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान तीन बार जेल गए. सन 1931 में इन्हें भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस में अहम् स्थान मिला.  इनके कार्य के प्रति लग्न को देख कर इन्हें 1937 में गुजरात प्रदेश काँग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया. इसके बाद इन्होने गुजरात में भारतीय युवा काँग्रेस का गठन किया. देसाई जी को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस युवा काँग्रेस का अध्यक्ष बना दिया. यह राजस्व एवम गृहमंत्री भी रहे. देसाई जी कट्टर गाँधीवादी नेता एवम उच्च चरित्र का पालन करने वाले व्यक्ति थे. इन्होने उस वक्त फिल्मों में होने वाले अभद्र चित्रण का विरोध किया. 1937 में , इन्हें रेवेन्यु, एग्रीकल्चर एवं फारेस्ट डिपार्टमेंट का मंत्री नियुक्त किया गया. महात्मा गांधीजी द्वारा किये गये सत्याग्रह आन्दोलन में हिस्सेदारी के कारण इन्हें जेल भेजा गया, जहाँ से देसाई जी अक्टुम्बर 1941 में मुक्त हुए. 1942 में भारत छोडो आन्दोलन के लिए उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया, फिर देसाई जी 1945 में बाहर आये.

मोरारजी देसाई राजनीतिक जीवन

जैसा की ऊपर कहा जा चुका है कि स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान राष्ट्रीय राजनीति में मोरारजी का नाम वज़नदार हो चुका था पर उनकी प्राथमिक रुचि राज्य की राजनीति में ही थी इसलिए 1952 में इन्हें बंबई प्रान्त का मुख्यमंत्री बनाया गया। गुजरात तथा महाराष्ट्र दोनों बंबई प्रोविंस के अंतर्गत आते थे। इसी दौरान भाषाई आधार पर दो अलग राज्य – माहाराष्ट्र (मराठी भाषी क्षेत्र) और गुजरात (गुजरात भाषी क्षेत्र) – बनाने की मांग बढ़ने लगी पर मोरारजी इस तरह के विभाजन के लिए तैयार नहीं थे। 

राज्यों को पुनर्गठित करने के बाद श्री देसाई 14 नवंबर 1956 को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो गए। बाद में उन्होंने 22 मार्च 1958 से वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभाला।

श्री देसाई ने आर्थिक योजना एवं वित्तीय प्रशासन से संबंधित मामलों पर अपनी सोच को कार्यान्वित किया। रक्षा एवं विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्होंने राजस्व को अधिक बढ़ाया, अपव्यय को कम किया एवं प्रशासन पर होने वाले सरकारी खर्च में मितव्ययिता को बढ़ावा दिया। उन्होंने वित्तीय अनुशासन को लागू कर वित्तीय घाटे को अत्यंत निम्न स्तर पर रखा। उन्होंने समाज के उच्च वर्गों द्वारा किये जाने वाले फिजूलखर्च को प्रतिबंधित कर उसे नियंत्रित करने का प्रयास किया।

वह यह मानते थे कि जब तक गांवों और कस्बों में रहने वाले गरीब लोग सामान्य जीवन जीने में सक्षम नहीं है, तब तक समाजवाद का कोई मतलब नहीं है। श्री देसाई ने किसानों एवं किरायेदारों की कठिनाइयों को सुधारने की दिशा में प्रगतिशील कानून बनाकर अपनी इस सोच को कार्यान्वित करने का ठोस कदम उठाया। इसमें श्री देसाई की सरकार देश के अन्य राज्यों से बहुत आगे थी। इसके अलावा उन्होंने अडिग होकर एवं पूर्ण ईमानदारी से कानून को लागू किया। बंबई में उनकी इस प्रशासन व्यवस्था की सभी ने जमकर तारीफ की।

केंद्र सरकार में मोरारजी को गृह मंत्री बनाया गया। गृह मंत्री के तौर पर उन्होंने फिल्मों और नाटकों के मंचन में अभद्रता प्रतिबंधित कर दिया था। वह नेहरु के समाजवाद का विरोध करते थे। एक राष्ट्रवादी और भ्रष्टाचार विरोधी नेता के तौर पर उनका कद कांग्रेस पार्टी में बढता जा रहा था और नेहरु के बाद उन्हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखा जाने लगा। लेकिन जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शाष्त्री को प्रधानमंत्री बनाया गया और मोरारजी को झटका लगा।
नियति का संयोग ऐसा हुआ की शाष्त्री के अकस्मात् मृत्यु के बाद महज 18 महीने के बाद ही प्रधानमंत्री की कुर्सी एक बार फिर खाली हो गयी। शाष्त्री की मृत्यु के बाद कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज ने पंडित नेहरु की बेटी इंदिरा गाँधी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सुझाया पर मोरारजी देसाई ने भी प्रधानमंत्री पद के लिए स्वयं का नाम प्रस्तावित कर दिया। कांग्रेस संसदीय पार्टी द्वारा मतदान के माध्यम से इस गतिरोध को सुलझाया गया और इंदिरा गाँधी विजयी हुई। इसके बाद मोरारजी इंदिरा गाँधी मंत्रिमंडल में उप-प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री बने। वर्ष 1969 में जब इंदिरा ने उनसे वित्त मंत्रालय वापस ले लिया तब उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। श्री देसाई ने इस बात को माना कि प्रधानमंत्री के पास सहयोगियों के विभागों को बदलने का विशेषाधिकार है लेकिन उनके आत्म-सम्मान को इस बात से ठेस पहुंची कि श्रीमती गाँधी ने इस बात पर उनसे परामर्श करने का सामान्य शिष्टाचार भी नहीं दिखाया। इसलिए उन्हें यह लगा कि उनके पास भारत के उप-प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था।

इसके बाद 1969 में कांग्रेस का विभाजन दो खंडो में हो गया। कांग्रेस पार्टी के विभाजन के बाद श्री देसाई कांग्रेस संगठन के साथ ही रहे। वे आगे भी पार्टी में मुख्य भूमिका निभाते रहे। वे 1971 में संसद के लिए चुने गए। 1975 में गुजरात विधानसभा के भंग किये जाने के बाद वहां चुनाव कराने के लिए वे अनिश्चितकालीन उपवास पर चले गए। परिणामस्वरूप जून 1975 में वहां चुनाव हुए। चार विपक्षी दलों एवं निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन से गठित जनता दल ने विधानसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त कर लिया। 

सन 1975 में जब इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने इंदिरा गाँधी के 1971 के चुनाव को अवैध करार दिया तब विपक्ष और एकजुट होकर उनके इस्तीफे की मांग की जिसके बाद देश में आपातकाल लागू कर दिया गया ।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा श्रीमती गांधी के लोकसभा चुनाव को निरर्थक घोषित करने के फैसले के बाद श्री देसाई ने माना कि लोकतांत्रिक सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए श्रीमती गांधी को अपना इस्तीफा दे देना चाहिए था।

आपातकाल घोषित होने के समय 26 जून 1975 को श्री देसाई को गिरफ्तार कर हिरासत में ले लिया गया था। उन्हें एकान्त कारावास में रखा गया था और लोकसभा चुनाव कराने के निर्णय की घोषणा से कुछ पहले 18 जनवरी 1977 को उन्हें मुक्त कर दिया गया। उन्होंने देशभर में पूरे जोर-शोर से अभियान चलाया एवं छठी लोकसभा के लिए मार्च 1977 में आयोजित आम चुनाव में जनता पार्टी की जबर्दस्त जीत में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। श्री देसाई गुजरात के सूरत निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुने गए थे। बाद में उन्हें सर्वसम्मति से संसद में जनता पार्टी के नेता के रूप में चुना गया एवं 24 मार्च 1977 को उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।

मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री पद (1977-1979)

मार्च 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ पर इस समय भी मोरारजी के अलावा प्रधानमंत्री पद के दो अन्य दावेदार भी उपस्थित थे – चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम – पर जयप्रकाश नारायण ने मोरारजी देसाई का समर्थन किया।

इस प्रकार 81 वर्ष की उम्र में मोरारजी देसाई भारत के प्रधानमंत्री बने। इनके शासन के दौरान, कांग्रेस शाषित नौ राज्यों की सरकारों को भंग कर दिया गया और नए चुनाव कराये जाने की घोषणा कर दी गई। सरकार का यह कदम साफ़-साफ़ बदले की भावना से प्रेरित, अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक था।

मोरारजी देसाई ने पड़ोसी मुल्कों पाकिस्तान और चीन से रिश्ते सुधारने की दिशा में पहल किया। उन्होंने चीन के साथ राजनयिक संबंधो को बहाल किया और इंदिरा गाँधी सरकार द्वारा किये गए बहुत सारे संवैधानिक संशोधनों को उनके मूल रूप में वापस कर दिया।

चुनाव प्रचार के दौरान मोरारजी देसाई ने भारत के ख़ुफ़िया एजेंसी ‘रॉ’ को बंद करने की बात कही थी और जब वो प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने सचमुच एजेंसी का अकार और बजट बहुत कम कर दिया था।

जनता पार्टी भ्रष्टाचार और आपातकाल जैसे मुद्दों के बल पर कांग्रेस को हराकर सरकार बनाने में सफल हुई थी पर घटक दलों की आपसी कलह ने सरकार को बहुत नुक्सान पहुँचाया और जन 1979 में राज नारायण और चौधरी चरण सिंह ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया तब मात्र दो साल की अल्प अवधि  में ही मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा।

मोरारजी देसाई सम्मान  (Morarji desai Awards )

  • 1990 में पाकिस्तान सरकार द्वारा निशान-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किया गया.
  • 1991 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया.

मोरारजी देसाई निधन

प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे के बाद मोरारजी देसाई ने 83 साल की उम्र में राजनीति से संन्यास ले लिया और मुंबई में रहने लगे। 10 अप्रैल 1995 को 99 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।

प्रधानमंत्री के रूप में श्री देसाई चाहते थे कि भारत के लोगों को इस हद तक निडर बनाया जाए कि देश में कोई भी व्यक्ति, चाहे वो सर्वोच्च पद पर ही आसीन क्यों न हो, अगर कुछ गलत करता है तो कोई भी उसे उसकी गलती बता सके। उन्होंने बार-बार यह कहा, “कोई भी, यहाँ तक कि प्रधानमंत्री भी देश के कानून से ऊपर नहीं होना चाहिए”।

उनके लिए सच्चाई एक अवसर नहीं बल्कि विश्वास का एक अंग था। उन्होंने शायद ही कभी अपने सिद्धांतों को स्थिति की बाध्यताओं के आगे दबने दिया। मुश्किल परिस्थितियों में भी वे प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ते गए। वह स्वयं यह मानते थे – ‘सभी को सच्चाई और विश्वास के अनुसार ही जीवन में कर्म करना चाहिए’।

source: pmindia, wikipedia,

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