निहंग वैसे नहीं होते | आखिर कौन हैं निहंग? निहंग सिखों से जुड़े 20+ रोचक तथ्य Amazing Facts about Nihang Sikh

आखिर कौन हैं निहंग? / निहंग वैसे नहीं होते, जिन्होंने पटियाला में पुलिस पर हमला किया; ये तो शौर्य, अनुशासन और सेवाभाव से भरी गुरु की लाड़ली फौज है

सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 में आननंदपुर साहिब की धरती पर श्री केशगढ़ साहिब में खालसा पंथ साजा था। उस वक्त उन्होंने पांच प्यारों को अपना बाणा और बाणी दी। निहंग सिख वही हैं, जिन्होंने उस बाणा और बाणी को अभी तक संभाल कर रखा है। इन्हें गुरु की लाड़ली फौज भी कहा जाता हैं। इतिहास में मुगलों और अंग्रेजों के साथ कई जंग में निहंगों की शौर्य गाथाएं मिलती हैं। अब जंग तो नहीं होती, मुंगल और अंग्रेज भी चले गए, लेकिन निहंग सिखों का शौर्य, लड़ाकापन और रसूख वैसे का वैसा ही है।
इनके हथियार, लड़ाकापन, शौर्य, मार्शल आर्ट, नित-नियम को लेकर सख्ती और दुनियावी चीजों से इनका बेलागपन इन्हें दूसरों से अलग करता है 
नीले चोले में, केसरिया परने से कमर बांधे, पगड़ी में तरह-तरह के हथियार, दुमाला, खांडा, बरछा या तलवार लेकर चलने वाले निहंगों की दुनिया ही अलग है. यह लोग पूर्ण रूप से सिख धर्म के प्रति समर्पित होते हैं तथा अंतिम सांस तक धर्म की रक्षा में जुटे रहते हैं ।

निहंग सिखों से जुड़े 22 रोचक तथ्य Facts about Nihang Sikh

  1. निहंग से अभिप्राय है ऐसे सिख जो दस गुरुओं के आदेशों के पूर्ण रूप से पालन के लिए हर समय तत्पर रहते हैं और प्रेरणाओं से ओतप्रोत होते हैं।
  2. ‘निहंग’ शब्द फारसी भाषा में से लिया गया है जिसके अर्थ है: खडग़, तलवार, कलम, मगरमच्छ, घडिय़ाल, घोड़ा, दलेर, निरलेप, आत्म ज्ञानी जिसको मृत्यु का भय न हो। 
  3. निहंग सिखों के धर्म-चिन्ह आम सिखों की अपेक्षा मज़बूत और बड़े होते हैं।
  4. निहंग सिंघ सिख पंथ का अभिन्न तथा महत्वपूर्ण अंग हैं।
  5. दस गुरुओं के काल में ये सिख गुरु साहिबानों के प्रबल प्रहरी होते थे, व गुरु महाराजों द्वारा रची गई रचना गुरु ग्रंथ साहिब के प्रहरी अब भी होते हैं।
  6. निहंगों को उनके आक्रामक व्यक्तित्व के लिए भी जाना जाता है।
  7. पांच शस्त्र निहंग सिंघों को जान से भी प्यारे हैं जिनमें कृपान,खंडा,बाघ-नखा,तीर- कमान तथा चक्र का नाम वर्णनीय है।
  8. निहंगों को अकालियों के नाम से भी जाना जाता है जो सिखों में बेहद प्रतिष्ठित माने जाते हैं।
  9. इतिहास में मुगलों और अंग्रेजों के साथ कई जंग में निहंगों की शौर्य गाथाएं मिलती हैं। अब जंग तो नहीं होती, लेकिन निहंग सिखों का शौर्य, लड़ाकापन और रसूख वैसा ही है।
  10. अगर किसी सिख धर्म गुरु या सिख धर्म पर किसी प्रकार का भी प्रहार होता था तो निहंग सीखें आगे बढ़कर उसकी रक्षा करते थे।
  11. ‘आए ने निहंग, बुआ खोल देओ निसंग, निहंग कहावे सो पुरख, दुख सुख मने न अंग’ यानी गुरु की इस लाड़ली फौज को समाज में वो दर्जा हासिल था कि बोला जाता था घर का दरवाजा निसंग खोल दो, डरने की बात नहीं है, निहंग आ गए हैं।
  12. निहंग सिख यानी बेहद जोशीली, सम्मानित हथियारबंद सिख कौम। जो बाणा और बाणी के आधार पर दूसरे पगड़ीधारी सिखों से थोड़ी अलग है। इनके हथियार, लड़ाकापन, शौर्य, मार्शल आर्ट, नित-नियम को लेकर सख्ती और दुनियावी चीजों से इनका बेलागपन इन्हें दूसरों से अलग करता है।
  13. निहंगों का जंगी अभ्यास गतका, इनकी भाषा भी जंगी। एक निहंग सवा लाख पर भारी
  14. ‘महान कोष’ के पृष्ठ 704 पर निहंग सिंघों के बारे इस प्रकार लिखा है: "निहंग सिंघ,सिक्खों का एक साम्प्रदाय है,जो शीश पर फरहे वाला  दुमाला, चक्र, तोड़ा, कृपान, खंडा, गजगाह आदि शस्त्र तथा नीला बाणा पहनता है।"
  15. वे रात के एक बजे नहाते हैं। उसके बाद बाणी का पाठ।
  16. शौच जाने के बाद पंज स्नाना किए जाते हैं।
  17. गतका और घुड़सवारी में इनका कोई सानी नहीं। यह अपने घोड़े को भाईजान कहते हैं। घोड़ा इनकी जान होता।
  18. पंचम पातशाह श्री गुरू अर्जुन देव जी निहंग सिंघों की निर्भयता के बारे में गुरू ग्रंथ साहिब के अंग 392 पर इस प्रकार फुर्माते हैं:- "निरभउ होइओ भइआ निहंगा"
  19. पंथ के प्रसिद्ध लेखक रतन सिंह भंगू ‘श्री गुरू पंथ प्रकाश’ में निहंग सिंघों का जिक्र करते हुए लिखते हैं:- "निहंग कहावै सो पुरश, दुख सुख मंने न अंग"
  20. निहंग वैसे नहीं होते, जिन्होंने पटियाला में पुलिस पर हमला किया; ये तो शौर्य, अनुशासन और सेवाभाव से भरी गुरु की लाड़ली फौज है
  21. यूं समझ लीजिए कि निहंग सिखों के डेयर डेविल्स हैं, जिनकी शुरुआत खुद दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी ने 300 वर्षों से भी अधिक पहले किया था। 
  22. आज की तारीख में निहंग मुख्य तौर पर होला मोहल्ला जैसे त्योहारों पर अपने मार्शल आर्ट का प्रदर्शन करते हैं। 

निहंग सिखों का इतिहास

सिख पंथ न्यारा, प्यारा तथा दीन-दुखियों का सहारा पंथ है। इस निर्मल पंथ के सृजनहार श्री गुरू नानक देव जी ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा जन-साधारण को बदी से तोडऩे,नेकी की ओर मोडऩे तथा सत्य (परमात्मा) से जोडऩे में लगाया है। गुरू साहिब की इस लागत ने सिक्खी (एक उत्तम जीवन जाच) में निखार लाने के साथ- साथ इसके पासार में भी बहुत महत्वपूर्ण योगदान डाला है। इस पंथ के न्यारे तथा सतिकारित अस्तित्व को कायम रखने के लिए शेष नौं गुरू साहिबान तथा उनके परम सेवकों ने भी अपने-अपने समय में भारी व सराहनीय योगदान डाला है। 1708 ई0 में श्री गुरू गोबिंद सिंघ जी ने गुरू ग्रंथ साहिब को गुरिआई बखश कर जहां पंथ को सदीवी तौर पर शब्द-गुरू के सिद्धान्त के साथ जोड़ दिया वहां साथ ही इस (पंथ) की चढ़ती कला के लिए कुछ जत्थेबन्दियों (संगठनों) की स्थापना भी की। इन जत्थेबन्दियों में से ही एक सिरमौर जत्थेबंदी (संगठन) निहंग सिंघों की है,जिसको गुरू की लाडली फ़ौज के नाम से भी जाना जाता है।

निहंग सिखों से जुडी पौराणिक कहानिया

पंथ की शस्त्रधारी धिर निहंग सिंघों को अकाली भी कहा जाता है क्योंकि वे एक अकाल (वाहिगुरू) के पुजारी हैं तथा अकाल-अकाल जपते हैं। इनके विल्क्षण स्वरूप के बारे में बहुत सी अवधारणाएं प्रचलित हैं। यादि ‘मालवा इतिहास’ के पृष्ठ नं. 436 हवाले से बात की जाए तो वह प्रष्ठ कहता है कि जब छठे गुरू हरिगोबिंद जी ग्वालियर के किले में नज़रबंद किए गए थे तो उस समय गुरू नानक नाम-लेवा संगत बाबा बुड्ढा जी के नेतृत्व में गुरू दर्शन के लिए किले की ओर जाया करती थी। बाबा जी निशान साहिब लेकर संगत के आगे-आगे चला करते थे। उनकी इस प्रेम तथा दीदार भावना से प्रसन्न होकर छठे पातशाह ने कहा था कि,‘बाबा जी कुछ समय के बाद तेरा यह निशानों वाला पंथ अपनी विल्क्षण पहचान स्थापित करेगा।’ एक और अवधारणा के अनुसार साहिबज़ादा फतह सिंह शीश पर दुमाला सजा कर कलगीधर पातशाह के सम्मुख हुए जिसको देख कर गुरू साहिब ने फुर्माया,कि इस बाणे के धारणी निहंग होंगे।
एक और विचार के मुताबिक गुरू गोबिंद सिंह जी ने माछीवाड़े से (उच्च का पीर बन कर) चलते समय जो नीला बाणा धारण किया था,जब उसको आग में जलाया गया तो उसकी एक लीर (टुकड़ा) भाई मान सिंघ ने अपनी दस्तार में सजा ली थी जिससे निहंग सिंघों के बाणे की आरम्भता मानी जाती है। जब मुगलों ने ख़ालसा पंथ को समाप्त करने के लिए हर प्रकार का अत्याचारी साधन प्रयोग करना आरम्भ किया तो उस संकटकालीन स्थिति से टकराने के लिए खालसा हर समय तैयार-बर- तैयार रहने लगा। ख़ालसे ने अधिक से अधिक शस्त्र रखने के साथ-साथ अपनी अलग वर्दी भी धारण कर ली जिसमें नीले रंग का लम्बा चोला,कमर के साथ कमरकसा,घुटनों तक कछहरा ,सिर पर ऊंची दस्तार तथा उसके गिर्द चक्र सजाना शामिल है। इस प्रकार शस्त्र तथा बस्त्र (निहंग बाणे) का धारणी होकर खालसा अकाल पुरख की फ़ौज के रूप में मैदान-ए- जंग में जूझता रहा है तथा गुरू घर के शत्रुओं को नाकों चने चबाता रहा है। 

होला मोहल्ला के अवसर दिखाते हैं युद्ध कौशल

अपने मार्शल कौशल की वजह से धार्मिक तौर पर इन्हें योद्धा का दर्जा मिला हुआ है, जिनकी प्राथमिक जिम्मेदारी गुरुद्वाराओं की रक्षा करना और युद्ध के समय सबसे आगे रहना है। आज की तारीख में निहंग मुख्य तौर पर होला मोहल्ला जैसे त्योहारों पर अपने मार्शल आर्ट का प्रदर्शन करते हैं। ये परंपरा गुरु गोबिंद सिंह जी के जमाने से ही चली आ रही है।

सिक्ख धर्म की परम्परा तथा गुरमर्यादा को कायम रखने तथा गुरधामों की सेवा-सम्भाल हित निहंग सिंघों ने अपना बनता योगदान डाला है। निहंग सिंघों में वे सभी खूबियां मिलती हैं ,जिनको कलगीधर पिता प्यारते तथा सतिकारते थे। इन खूबियों के कारण ही निहंग सिंघों को गुरू की लाडली फ़ौज का खिताब मिला हुआ है। यह सभी छोटे आकार के होते हैं तथा निहंग सिंह इनको दुमाले में सजा कर रखते हैं। सिक्ख फौज में बड़ी तादाद निहंग सिंघों की ही होती थी। इनके चरित्र का एक तसल्लीबखश पक्ष यह भी रहा है कि जब निहंग जैकारे गजाते किसी नगर में पांव डालते तो लोग स्वयं ही अपनी बहु-बेटियों को कह देते थे: ‘आए नी निहंग, बूहे खोल दो निसंग।’ ऊंचे चरित्र के मालिक निहंग सिंघ बहुत ही भजनीक,शूरवीर,निर्भय,निरवैर तथा अपने वचन के धनी हुए हैं। सिख विश्वास तथा इतिहास को सम्मानपूर्वक बनाने में इनकी भूमिका साकारात्मक रही है।
wikipedia : १८६० के दशक का एक चित्र जिसमें एक निहंग अपनी विशिष्ट पगड़ी में चित्रित है।

लम्बे समय से कई शहीदी स्थानों तथा डेरों की सेवा-सम्भाल का उत्तरदायित्व भी निहंग सिंघों द्वारा निभाया जा रहा है। इनके डेरों को छावनियां कहा जाता है। श्री दमदमा साहिब (तलवंडी साबो) की वैसाखी,श्री अमृतसर साहिब की दीवाली तथा श्री अनंदपुर साहिब का होला-महल्ला निहंग सिंघों की भरपूर तथा मशहूर हाजिरी वाले त्यौहार हैं। होले-महल्ले के रंग तो निहंग सिंघों की उपस्थिति के बिना उघड़ते ही नहीं हैं। सर्ब- लोह के बर्तनों तथा घोड़ों के साथ निहंग सिंघों को विशेष प्रेम होता है। इसके अतिरिक्त यह शस्त्रों को भी अंग लगा कर रखते हैं। निहंग सिंघों की बोल-बाणी भी विलक्षण तथा रौचकता भरपूर होती है। घाटे वाली स्थिति को लाभदायक नज़र से देखना इस बोल-बाणी का एक अहम पक्ष रहा है। इसीलिए इस बोल-बाणी को ‘गडग़ज्ज-बोलों ’ का नाम दिया जाता है। इन गडग़ज्ज-बोलों के अधीन ही एक सिंघ को सवा लाख कहने से शत्रु दंग रह जाते थे तथा मैदान छोड़ जाते थे। वर्तमान समय भी निहंग सिंघों के कई दल मौजूद हैं जो अलग-अलग भिन्नताओं के पथिक होने के कारण कई प्रकार की आलोचनाओं का शिकार होते रहते हैं।

SOURCE : wikipedia, dainik bhaskar

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