भारतीय संस्कृति में नमस्ते का अर्थ क्या है | Namaste Meaning in hindi

भारतीय संस्कृति में नमस्ते का अर्थ क्या है, विज्ञान भी इसे क्यूँ सही मानता है (वैज्ञानिक कारण),पश्चिमी सभ्यता क्यूँ अपना रही है इसे (Namaste Meaning in hindi, Spiritual Meaning, Importance, Scientific Reason, Symbol, Origin, Benefit)

दोस्तों और मेरे आदरणीय पाठकों, अधिकतर हिन्दू लोग जब किसी से मिलते हैं तो “नमस्ते ” या ” नमस्कार ” कर के एक दुसरे का अभिवादन करते हैं, अधिकतर लोगो को ये पता ही नहीं होता की वो नमस्ते क्यूँ करते हैं और इसका क्या अर्थ होता है। उन्ही लोगो के लिए ये जानकारी भरा post है ताकि जब अगली बार किसी से नमस्ते कहें तो कम से कम उन्हें उसका अर्थ अवश्य पता हो|

हाल ही में कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण नमस्कार या नमस्ते शब्द विश्वव्यापी बन गया है समस्त विश्व में सभी लोग हाथ मिलाने की वजह नमस्कार नमस्कार को अभिवादन के रूप में स्वीकार कर रहे हैं। नमस्ते शब्द अब विश्वव्यापी हो गया है। विश्व के अधिकांश स्थानों पर इसका अर्थ और तात्पर्य समझा जाता है और प्रयोग भी करते हैं। फैशन के तौर पर भी कई जगह नमस्ते बोलने का रिवाज है। यद्यपि पश्चिम में "नमस्ते" भावमुद्रा के संयोजन में बोला जाता है, लेकिन भारत में ये माना जाता है कि भावमुद्रा का अर्थ नमस्ते ही है और इसलिए, इस शब्द का बोलना इतना आवश्यक नहीं माना जाता है।



शास्त्रों में पाँच प्रकार के अभिवादन बतलाये गये हैं, जिनमें से एक है ‘नमस्कारम’
  • प्रत्युथान : किसी के स्वागत में उठ कर खड़े होना
  • नमस्कार : हाथ जोड़ कर सत्कार करना
  • उपसंग्रहण : बड़े, बुजुर्ग, शिक्षक के पाँव छूना
  • साष्टांग : पाँव, घुटने, पेट, सर और हाथ के बल जमीन पर पुरे लेट कर सम्मान करना
  • प्रत्याभिवादन : अभिनन्दन का अभिनन्दन से जवाब देना 
नमस्ते शब्द का उपयोग अतिथि एवं श्रद्धेय के अभिवादन के लिए किया जाता है. भारतीय संस्कृति में नमस्ते का उपयोग ही सामान्यतः उपयुक्त माना गया है,। नमस्कार को कई प्रकार से देखा और समझा जा सकता है। संस्कृत में इसे विच्छेद करे तो हम पाएंगे कि नमस्ते दो शब्दों से बना है नमः स्ते। नमः का मतलब होता है मैं (मेरा अहंकार) झुक गया।

नम का एक और अर्थ हो सकता है जो है न में यानी कि मेरा नहीं। अध्यात्म की दृष्टि से इसमें मनुष्य दूसरे मनुष्य के सामने अपने अहंकार को कम कर रहा है।

नमस्ते करते समय दोनों हाथों को जोड़कर एक कर दिया जाता है, जिसका अर्थ है कि इस अभिवादन के बाद दोनों व्यक्ति के दिमाग मिल गए या एक दिशा में हो गये। परंतु पिछले कुछ समय में कोरोना वायरस के फैलने की वजह से यह देखा जा रहा है कि नमस्ते की प्रथा विदेशी संस्कृति को भी अपनानी पड़ रही है. जिसका विशेष कारण है, स्वयं को दूसरों से दूर रख कर उसका प्रेम पूर्वक अभिवादन करना. शारीरिक सम्पर्क दो व्यक्तियों के बीच सूक्ष्म-ऊर्जा के प्रवाह को और सुगम बनाता है। अभिवादन की इस पद्धति में शारीरिक सम्पर्क न होने के कारण अन्य व्यक्ति के नकारात्मक रूप से प्रभावित करने की क्षमता न्यूनतम हो जाती हैI

नमस्ते शब्द की उत्पत्ति कहां से हुई –

नमस्ते शब्द संस्कृत भाषा के शब्द से उत्पन्न हुआ है. संस्कृत में नमः + ते का अर्थ होता है, तुम्हें प्रणाम. इस पूरे शब्द को मिलाकर नमस्ते शब्द बनता है. सामान्यतह भारतीय संस्कृति में नमस्ते, प्रणाम, नमः जैसे शब्दों का उपयोग कर अभिवादन किया जाता है. ज्यादातर नमस्ते प्रथा दक्षिणी एशिया के देशों में प्रचलित है. यह भारत और नेपाल की सभ्यता में निहित हैं.


नमस्कार को कई प्रकार से देखा और समझा जा सकता है। संस्कृत में इसे विच्छेद करे तो हम पाएंगे की नमस्ते दो शब्दों से बना है – नमः + असते

नमः का मतलब होता है झुक गया और असते का मतलब सर ( अहंकार या अभिमान से भरा ), यानि मेरा अहंकार से भरा सर आपके सम्मुख झुक गया । नम: का एक और अर्थ हो सकता है जो है न + में यानी की मेरा नहीं, सब कुछ आपका।

नमस्ते केवल एक सामान्य मुद्रा नहीं अपितु एक ऐसी मुद्रा है जिसका संबंध विज्ञान से है. नमस्ते के लिए सामान्यत: लोगों को अपने दोनों हाथों को आपस में जोड़ना होता है. इन जुड़े हुए हाथों को हृदय के समीप रखकर आंखें बंद करके सर झुकाना होता है. जब भी कोई व्यक्ति हाथों को जोड़कर उसे ह्रदय के पास रखता है तो उसके मस्तिष्क को शांत रखने के उचित संकेत मिलते हैं जिससे स्वयं ही उस व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और अगर वह व्यक्ति क्रोध अवस्था में था तो वह तुरंत ही शांत अवस्था में आ जाता है.

आध्यात्म की दृष्टी से इसमें मनुष्य दुसरे मनुष्य के सामने अपने अंहकार को कम कर रहा है। नमस्ते करते समय में दोनों हाथो को जोड़ कर एक कर दिया जाता है जिसका अर्थ है की इस अभिवादन के बाद दोनों व्यक्ति के दिमाग मिल गए या एक दिशा में हो गये।

नमस्ते कब किया जाता हैं – 

किसी व्यक्ति के आने पर उसे अभिवादन के लिए नमस्ते किया जाता है साथ ही उसके जाने पर भी नमस्ते करके ही उसका अभिवादन किया जाता है अर्थात अतिथि सत्कार के समय नमस्ते किया जाता हैं. 
अतिथि सत्कार के अलावा हिंदू धर्म में भगवान का अभिवादन भी हाथ जोड़कर नमन करके ही किया जाता है, इसमें भी नमस्ते की मुद्रा का ही उपयोग होता है. 

नमस्ते एवं हैंडशेक में अंतर –

पाश्चयात संस्कृति में किसी का अभिवादन करने के लिए हैंड शेक किया जाता है, यानी कि दो व्यक्ति आपस में एक दूसरे को हाथ पकड़ कर हिलाते हुये अभिवादन करते हैं लेकिन वर्तमान स्थिति में जब दुनिया के कई देशों में कोरोनावायरस की विपदा आई है, तभी से या देखा जा रहा है कि पाश्चयात संस्कृति के लोग भी हैंड शेक के बजाय नमस्ते को अपना रहे हैं और विज्ञान भी हैंड शेक की बजाय नमस्ते को ही उपयुक्त मानता है. ऐसा क्यों ?



क्यूँ विज्ञान नमस्ते को उपयुक्त मानता हैं –

ऐसा इसलिए है क्योंकि हैंड शेक के दौरान व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से सीधा संपर्क में आता है और हाथ ही एक ऐसा जरिया है जिसमें ज्यादातर वायरस होते हैं और अगर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को हैंड शेक करता है तो वायरस स्थानांतरित होते हैं और एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश करते हैं.

इसके अलावा यह तो वर्तमान स्थिति की वजह से है लेकिन भारतीय संस्कृति में हमेशा ही हैंड शेक की बजाय नमस्ते की प्रथा प्रचलित है. ऐसा क्यों इसके पीछे भी एक वैज्ञानिक कारण है, हम सभी जानते हैं कि मनुष्य में उर्जा का प्रवाह निरंतर होता रहता है. मनुष्य में बहुत तरह की ऊर्जा होती है जिसमें कई तरह की उर्जा सकारात्मक होती है और कई तरह की ऊर्जा नकारात्मक होती है. अगर कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति से अभिवादन करते समय हैंड शेक करता है या किसी भी तरह का स्पर्श करता है तो उसके शरीर की एनर्जी अथवा उर्जा दूसरे के शरीर में प्रवेश कर जाती है जिससे जिस भी व्यक्ति के शरीर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है. उसे हानि होती है साथ ही जिसके शरीर से सकारात्मक ऊर्जा दूसरे व्यक्ति के शरीर में चली जाती है अथवा स्थानांतरित हो जाती है उसे भी इसका नुकसान होता है.

मनुष्य के शरीर में ऊर्जा का महत्व बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण होता है इसीलिए नमस्ते कर अपनी उर्जा को अपने ही शरीर के अंदर प्रवाहित करने की परंपरा विज्ञान संगत है इसलिए नमस्ते हिन्दू संस्कृति में उपयुक्त माना गया हैं.

नमस्ते की मुद्रा क्या होती हैं –

नमस्कार मुद्रा करने से, दैवी चैतन्य बडी मात्रामें देह में अवशोषित होता है। ’नमस्ते’ अथवा ‘नमस्कार’ शब्द कहने पर आकाशतत्व का आवाहन हो जाता है। इन शब्दों को हाथ की मुद्रा के साथ कहने पर पृथ्वीतत्व का भी आवाहन होता है। मुद्रा स्वयं पृथ्वीतत्व से सम्बंधित है, इस कारण यह संभव हो पता है I इस प्रकार पांच संपूर्ण सृष्टिके सिद्धांतों को अधिकाधिक मात्रा में जागृत करने पर अत्याधिक आध्यात्मिक सकारात्मकता आकृष्ट होती है। इसप्रकार, एक से अधिक पंचमहाभूतों का आवाहन होने पर आध्यात्मिक सकारात्मकता अधिक मात्रा में आकृष्ट होती है। 
नमस्ते की मुद्रा में एक साधु
नमस्ते की मुद्रा में एक साधु
योग के अनुसार नमस्ते करने के लिए, दोनो हाथों को अनाहत चक पर रखा जाता है, आँखें बंद की जाती हैं, और सिर को झुकाया जाता है। इस विधि का विस्तार करते हुए हाथों को स्वाधिष्ठान चक्र (भौहों के बीच का चक्र) पर रखकर सिर झुकाकर और हाथों को हृदय के पास लाकर भी नमस्ते किया जा सकता है। 
यह विधि गहरे आदर का सूचक है। जरूरी नहीं कि नमस्ते, नमस्कार या प्रणाम करते हुए ये शब्द बोले भी जाएं। नमस्कार या प्रणाम की भावमुद्रा का अर्थ ही उस भाव की अभिव्यक्ति है। 

इस पूरी मुद्रा को अंजलि मुद्रा कहा जाता है और इसी का उपयोग नमस्ते, प्रणाम, सतश्रीअकाल आदि अभिवादन के समय उपयोग किया जाता है.

नमस्कार करने के पीछे का प्रयोजन : 

  • इसके आध्यात्मिक लाभों के कारण, नमस्कार करने वाले दोनों व्यक्तियों के बीच की नकारात्मक स्पंदन कम हो जाते हैं और सात्विक स्पंदन का लाभ प्राप्त होता है
  • नमस्ते की मुद्रा एक योगासन है, नमस्ते करते समय मनुष्य के दिमाग में उत्पन्न तनाव कम होता है और उसे सहज महसूस होता है. 
  • नमस्ते की मुद्रा से मन एकाग्र चित्त होता है जिससे ध्यान केंद्रित होने के कारण शरीर को काफी लाभ प्राप्त होता है. 
  • नमस्ते की मुद्रा के कारण व्यक्ति तनाव मुक्त होता है उससे स्वतह ही उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव दिखते हैं और इस तरह से किसी का अभिवादन करने से मनुष्यों के बीच रिश्ते गहरे बनते हैं. 
  • नमस्ते की मुद्रा से हाथ, कलाई एवं उंगलियों की निर्धारित अवस्था के कारण उसमें लचीलापन आता है यह एक तरह का हाथों का योग माना गया हैं. 
  • नमस्कार अर्थात दूसरों में दैवी रूप को देखना, यह आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाता है और दैवी चेतना (चैतन्य) को आकर्षित करता है । यदि नमस्कार ऐसी आध्यात्मिक भाव से किया जाये कि हम सामने वाले व्यक्ति की आत्मा को नमस्कार कर रहे हैं, यह हममें कृतज्ञता और समर्पण की भावना जागृत करता है। यह आध्यात्मिक विकासमें सहायता करता है। 
  • नमस्कार करते समय यदि हम ऐसा विचार रखते हैं कि “आप हमसे श्रेष्ठ हैं, मैं आपका अधीनस्त हूँ, मुझे कुछ भी ज्ञान नहीं और आप सर्वज्ञ हैं”, यह अहंकारको कम करने और विनम्रताको बढ़ाने में सहायक होता है। 
  • हिंदू संस्कृति में अभिवादन की मुद्रा नमस्ते के बहुत सारे लाभ है और हैंड शकिंग से होने वाले नुकसान से भी नमस्ते मुक्ति दिलाता है इसलिए आज के समय में पश्चिमी सभ्यता भी नमस्ते को अपने संस्कृति में शामिल कर रही है.

हम बड़ों के पैर क्यों छूते है ?: 

भारत में बड़े बुजुर्गो के पाँव छूकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। ये दरअसल बुजुर्ग, सम्मानित व्यक्ति के द्वारा किए हुए उपकार के प्रतिस्वरुप अपने समर्पण की अभिव्यक्ति होती है। अच्छे भाव से किये हुए सम्मान के बदले बड़े लोग आशीर्वाद देते है जो एक सकारात्मक ऊर्जा होती है।

पर आज कल पश्चिमी संस्कृति के हावी होने के कारण हम नमस्ते ,प्रणाम अदि कहना लगभग भूलते जा रहे हैं और अब उनकी जगह “Hi ” Hello ” Good Morning ” या ” Good Night ” जैसे शब्दों ने ले लिया जिसके अर्थ और अनर्थ का पता ही नहीं चलता। अत: हमारा आपसे ये निवेदन है की अगर आपको उचित लगे तो Hi, Hello की संस्कृति छोड़ कर नमस्ते या नमस्कार वाली सनातन संस्कृति अपनाएं, जय श्रीराम जी की बोलें, आप सभी को मेरा नमस्कार।

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