जलवायु परिवर्तन-एक वैश्विक चुनौती पर निबन्ध | Essay on Climate change - a global challenge
दरअसल, पिछली कुछ सदियों से हमारी जलवायु में धीरे-धीरे बदलाव हो रहा है. यानी, दुनिया के विभिन्न देशों में सैकड़ों सालों से जो औसत तापमान बना हुआ था, वह अब बदल रहा है.
जलवायु परिवर्तन शब्द आज के समय में अक्सर हमे, कही-न-कही समाचार पत्रों में और टीवी में अक्सर सुनाई देता है जिस शब्द का जिक्र होते ही मन में कही ना कही चिंता/भाव भी जरुर आने लगती है अर्थात जलवायु परिवर्तन यानी Climate Change Essay मौसम के दशाओ के परिवर्तन से लिया जाता है जिसे पूरा विश्व में अब Global Warming के नाम से भी जाना जाता है जिसका असर धीरे-धीरे चलकर दीर्घकालिक रूप में देखने को मिलता है | तो आज हम आप सभी विद्यार्थियों को “जलवायु परिवर्तन” से सम्बंधित जानकारी देगे, Climate Change Essay in Hindi : जिनसे अक्सर प्रतियोगी परीक्षाओं में “Climate Change Essay Notes” से बहुत से प्रश्न परीक्षाओं में पूछ लिए जाते है | इसलिए आप सभी Jalvayu Parivartan Nibandh को अच्छे तरह से जरुर पढ़ लीजिए |
जलवायु परिवर्तन को समझने से पूर्व यह समझ लेना आवश्यक है कि जलवायु क्या होता है? सामान्यतः जलवायु का आशय किसी दिये गए क्षेत्र में लंबे समय तक औसत मौसम से होता है।
अतः जब किसी क्षेत्र विशेष के औसत मौसम में परिवर्तन आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) कहते हैं।
जलवायु परिवर्तन को किसी एक स्थान विशेष में भी महसूस किया जा सकता है एवं संपूर्ण विश्व में भी। यदि वर्तमान संदर्भ में बात करें तो यह इसका प्रभाव लगभग संपूर्ण विश्व में देखने को मिल रहा है।
पृथ्वी के समग्र इतिहास में यहाँ की जलवायु कई बार परिवर्तित हुई है एवं जलवायु परिवर्तन की अनेक घटनाएँ सामने आई हैं।
जलवायु परिवर्तन: एक वास्तविकता
पृथ्वी का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक बताते हैं कि पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। पृथ्वी का तापमान बीते 100 वर्षों में 1 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ गया है। पृथ्वी के तापमान में यह परिवर्तन संख्या की दृष्टि से काफी कम हो सकता है, परंतु इस प्रकार के किसी भी परिवर्तन का मानव जाति पर बड़ा असर हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन के कुछ प्रभावों को वर्तमान में भी महसूस किया जा सकता है। पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होने से हिमनद पिघल रहे हैं और महासागरों का जल स्तर बढ़ता जा रहा, परिणामस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं और कुछ द्वीपों के डूबने का खतरा भी बढ़ गया है।
जलवायु परिवर्तन की गंभीर चुनौती से इनकार नहीं किया जा सकता। वर्तमान में यह दुनिया भर के सभी क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है। बढ़ते समुद्री जल के स्तर और मौसम के बदलते पैटर्न ने हज़ारों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। दुनियाभर के तमाम प्रयासों के बावजूद भी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि जारी है और विशेषज्ञों को उम्मीद है कि आने वाले कुछ वर्षों में पृथ्वी की सतह का औसत तापमान काफी तेज़ी से बढ़ेगा एवं समय के साथ इसके दुष्प्रभाव भी सामने आएंगे। ध्यातव्य है कि जलवायु परिवर्तन आधुनिक समाज के लिये एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि पर्यावरण परिवर्तन से खाद्य उत्पादन को खतरा हो सकता है, समुद्र का जल स्तर बढ़ सकता है और प्राकृतिक घटनाएँ तेज़ी से सामने आ सकती हैं। आँकड़े बताते हैं कि 1980 से 2011 के बीच बाढ़ के कारण दुनियाभर के तकरीबन पाँच मिलियन लोग प्रभावित हुए और विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को आर्थिक नुकसान का भी सामना करना पड़ा। कई देशों में जलवायु परिवर्तन के कारण अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्र जैसे- कृषि और पर्यटन भी प्रभावित हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त विश्व के कुछ हिस्सों में अनवरत सूखे की स्थिति बनती जा रही है और वे पानी की भयंकर कमी से जूझ रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में ज़ीरो डे की स्थिति इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है। मौसम के बदलते पैटर्न ने उन स्थानों के स्थानीय वातावरण को भी बदल दिया है जहाँ जीव-जंतु और वनस्पतियाँ पाई जाती हैं, जिसके कारण कई जानवर या तो पलायन कर रहे हैं या विलुप्ति की कगार पर आ गए हैं। सूखे और मौसम के बदलते पैटर्न ने दुनियाभर के किसानों को भी काफी प्रभावित किया है और वे अपनी फसलों को बदलने के लिये मज़बूर हो गए हैं। जलवायु परिवर्तन आम लोगों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि सूखा, खराब हवा और पानी की खराब गुणवत्ता के कारण तटीय और निचले इलाकों में खतरनाक स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो रही है। संयुक्त राष्ट्र (UN) का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के इन खतरों के खिलाफ लगातार कार्यवाही किये बिना इनसे निपटना संभव नहीं है।
जलवायु परिवर्तन के कारण
विभिन्न बाह्य एवं आंतरिक तंत्रों में बदलाव की वजह से जलवायु परिवर्तन होता है। आइए इनके बारे में में हम विस्तार से जानें:
ग्रीनहाउस गैसें:
पृथ्वी के चारों ओर ग्रीनहाउस गैस की एक परत बनी हुई है, इस परत में मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें शामिल हैं।
ग्रीनहाउस गैसों की यह परत पृथ्वी की सतह पर तापमान संतुलन को बनाए रखने में आवश्यक है और विश्लेषकों के अनुसार, यदि यह परत नहीं होगी तो पृथ्वी का तापमान काफी कम हो जाएगा।
आधुनिक युग में जैसे-जैसे मानवीय गतिविधियाँ बढ़ रही हैं, वैसे-वैसे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी वृद्धि हो रही है और जिसके कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है।
मुख्य ग्रीनहाउस गैसें
- कार्बन डाइऑक्साइड - इसे सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस माना जाता है और यह प्राकृतिक व मानवीय दोनों ही कारणों से उत्सर्जित होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, कार्बन डाइऑक्साइड का सबसे अधिक उत्सर्जन ऊर्जा हेतु जीवाश्म ईंधन को जलाने से होता है। आँकड़े बताते हैं कि औद्योगिक क्रांति के पश्चात् वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है।
- मीथेन - जैव पदार्थों का अपघटन मीथेन का एक बड़ा स्रोत है। उल्लेखनीय है कि मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड से अधिक प्रभावी ग्रीनहाउस गैस है, परंतु वातावरण में इसकी मात्रा कार्बन डाइऑक्साइड की अपेक्षा कम है।
- क्लोरोफ्लोरोकार्बन - इसका प्रयोग मुख्यतः रेफ्रिजरेंट और एयर कंडीशनर आदि में किया जाता है एवं ओज़ोन परत पर इसका काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
पृथ्वी की कक्षा में बदलाव
पृथ्वी की कक्षा में परिवर्तन होने से सूर्य के प्रकाश के मौसमी वितरण, जिससे सतह पर पहुंचने वाले सूर्य के प्रकाश की मात्रा प्रभावित होती है, में परिवर्तन होता है। कक्षीय परिवर्तन तीन प्रकार के होते हैं इनमें पृथ्वी की विकेंद्रता में परिवर्तन, पृथ्वी के घूर्णन के अक्ष के झुकाव कोण में परिवर्तन और पृथ्वी की धुरी की विकेंद्रता इत्यादि शामिल हैं। इनकी वजह से मिल्नकोविच चक्रों का निर्माण होता है जो जलवायु पर बहुत बड़ा प्रभाव डालते हैं।
भूमि के उपयोग में परिवर्तन
वाणिज्यिक या निजी प्रयोग हेतु वनों की कटाई भी जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारक है। पेड़ न सिर्फ हमें फल और छाया देते हैं, बल्कि ये वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड जैसी महत्त्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस को अवशोषित भी करते हैं। वर्तमान समय में जिस तरह से वृक्षों की कटाई की जा रही हैं वह काफी चिंतनीय है, क्योंकि पेड़ वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने वाले प्राकृतिक यंत्र के रूप में कार्य करते हैं और उनकी समाप्ति के साथ हम वह प्राकृतिक यंत्र भी खो देंगे।
कुछ देशों जैसे- ब्राज़ील और इंडोनेशिया में निर्वनीकरण ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का सबसे प्रमुख कारण है।
शहरीकरण
शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण लोगों के जीवन जीने के तौर-तरीकों में काफी परिवर्तन आया है। विश्व भर की सड़कों पर वाहनों की संख्या काफी अधिक हो गई है। जीवन शैली में परिवर्तन ने खतरनाक गैसों के उत्सर्जन में काफी अधिक योगदान दिया है।
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वर्ष 2015 सबसे गर्म वर्ष रहा (वर्ष 1880 से लेकर) – तापमान विसंगतियों को दर्शाते रंग: लाल-गर्म ,नील-ठंड़ा(NASA/NOAA); 20 जनवरी 2016). |
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
उच्च तापमान
पावर प्लांट, ऑटोमोबाइल, वनों की कटाई और अन्य स्रोतों से होने वाला ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन पृथ्वी को अपेक्षाकृत काफी तेज़ी से गर्म कर रहा है। पिछले 150 वर्षों में वैश्विक औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है और वर्ष 2016 को सबसे गर्म वर्ष के रूप में रिकॉर्ड किया गया है। गर्मी से संबंधित मौतों और बीमारियों, बढ़ते समुद्र स्तर, तूफान की तीव्रता में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कई अन्य खतरनाक परिणामों में वृद्धि के लिये बढ़े हुए तापमान को भी एक कारण माना जा सकता है। एक शोध में पाया गया है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के विषय को गंभीरता से नहीं लिया गया और इसे कम करने के प्रयास नहीं किये गए तो सदी के अंत तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान 3 से 10 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ सकता है।
वर्षा के पैटर्न में बदलाव
पिछले कुछ दशकों में बाढ़, सूखा और बारिश आदि की अनियमितता काफी बढ़ गई है। यह सभी जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप ही हो रहा है। कुछ स्थानों पर बहुत अधिक वर्षा हो रही है, जबकि कुछ स्थानों पर पानी की कमी से सूखे की संभावना बन गई है।
समुद्र जल के स्तर में वृद्धि
वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग के दौरान ग्लेशियर पिघल जाते हैं और समुद्र का जल स्तर ऊपर उठता है जिसके प्रभाव से समुद्र के आस-पास के द्वीपों के डूबने का खतरा भी बढ़ जाता है। मालदीव जैसे छोटे द्वीपीय देशों में रहने वाले लोग पहले से ही वैकल्पिक स्थलों की तलाश में हैं।
ध्रुवीय क्षेत्रों पर प्रभाव
हमारे ग्रह के उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव इसके जलवायु को विनियमित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं और बदलते जलवायु परिस्थितियों का बुरा प्रभाव इन पर भी हो रहा है। यदि ये परिवर्तन इसी तरह से जारी रहे, तो यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले समय में ध्रुवीय क्षेत्रों में जीवन पूरी तरह से विलुप्त हो सकता है।
वन्यजीव प्रजाति का नुकसान
तापमान में वृद्धि और वनस्पति पैटर्न में बदलाव ने कुछ पक्षी प्रजातियों को विलुप्त होने के लिये मजबूर कर दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, पृथ्वी की एक-चौथाई प्रजातियाँ वर्ष 2050 तक विलुप्त हो सकती हैं। वर्ष 2008 में ध्रुवीय भालू को उन जानवरों की सूची में जोड़ा गया था जो समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण विलुप्त हो सकते थे। हल ही में रिकॉर्ड तोड़ने वाला तापमान और महीनों का सूखा पूरे ऑस्ट्रेलिया में जंगल की आग का कारण बना है. जो करोड़ो वन्य जीवों की हत्या का कारन बनी.
रोगों का प्रसार और आर्थिक नुकसान
जानकारों ने अनुमान लगाया है कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियाँ और अधिक बढ़ेंगी तथा इन्हें नियंत्रित करना मुश्किल होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आँकड़ों के अनुसार, पिछले दशक से अब तक हीट वेव्स (Heat waves) के कारण लगभग 150,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
जंगलों में आग
जलवायु परिवर्तन के कारण लंबे समय तक चलने वाली हीट वेव्स ने जंगलों में लगने वाली आग के लिये उपयुक्त गर्म और शुष्क परिस्थितियाँ पैदा की हैं। ब्राज़ील स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च (National Institute for Space Research-INPE) के आँकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2019 से अब तक ब्राज़ील के अमेज़न वन (Amazon Forests) कुल 74,155 बार वनाग्नि का सामना कर चुके हैं। साथ ही यह भी सामने आया है कि अमेज़न वन में आग लगने की घटना बीते वर्ष (2018) से 85 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं।
- जलवायु परिवर्तन के कारण फसल की पैदावार कम होने से खाद्यान्न समस्या उत्पन्न हो सकती है, साथ ही भूमि निम्नीकरण जैसी समस्याएँ भी सामने आ सकती हैं।
- एशिया और अफ्रीका पहले से ही आयातित खाद्य पदार्थों पर निर्भर हैं। ये क्षेत्र तेज़ी से बढ़ते तापमान के कारण सूखे की चपेट में आ सकते हैं।
- IPCC की रिपोर्ट के अनुसार, कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में गेहूँ और मकई जैसी फसलों की पैदावार में पहले से ही गिरावट देखी जा रही है।
- वातावरण में कार्बन की मात्रा बढ़ने से फसलों की पोषण गुणवत्ता में कमी आ रही है। उदाहरण के लिये उच्च कार्बन वातावरण के कारण गेहूँ की पौष्टिकता में प्रोटीन का 6% से 13%, जस्ते का 4% से 7% और लोहे का 5% से 8% तक की कमी आ रही है।
- यूरोप में गर्मी की लहर की वजह से फसल की पैदावार गिर रही है।
- ब्लूमबर्ग एग्रीकल्चर स्पॉट इंडेक्स (Bloomberg Agriculture Spot Index) 9 फसलों का एक मूल्य मापक है जो मई में एक दशक के सबसे निचले स्तर पर आ गया था। इस सूचकांक की अस्थिरता खाद्यान सुरक्षा की अस्थिरता को प्रदर्शित करती है।
Climate Change Problem Solution (जलवायु परिवर्तन के समाधान) :
- सबसे पहले हमे अन्तराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के समाधान के लिए एकजुट होकर कोशिश करना चाहिए क्योकि यह किसी देश का निजी मामला नही बल्कि इस धरती के अस्तित्व से जुड़ा हुआ सवाल है जिस दिन सभी देश इस बात को समझ जाएगे सभी एकजुट होकर इस समस्या का समाधान कर सकते है तो इस प्रकार यदि पूरा विश्व एक मंच पर जलवायु परिवर्तन | Climate Change एवं Global Warming के खिलाफ खड़ा होता है निश्चित ही इस समस्या से निजात प् सकते है |
- जलवायु परिवर्तन के जिम्मेदार हमारी औद्योगिक व्यवस्था भी है हमे यह सुनिश्चित करना चाहिए की कल कारखानों से निकलने वाली गंदे पानी, रासायनिक तत्वों वाले पानी को कभी भी खुले पानी में नही मिलने देना चाहिए जिससे की हमारी पीने योग्य पानी सुरक्षित रहे जिससे होने वाली अनेक बीमारियों से सीधे सीधे रूप में बच सकते है
- और इन कारखानों से निकलने वाली चिमनियो के धुएं, जहरीली गैसों को भी वातावरण में नही मिलने देना चाहिए ताकि हमारा वातावरण दूषित ना हो और सभी को स्वास लेने के लिए शुद्ध वायु मिल सके
- मनुष्य को अंधाधुंध प्राकृतिक दोहन से बचना चाहिए यदि देखा जाय तो मानव अपनी आवश्कताओ के पूर्ति के लिए बड़े बड़े पहाड़ो को काटकर सीमेंट बनाया जा रहा है और उनसे अनेक प्रकार के नित नये प्रयोग भी किये जा रहे है जिसके कारण उस क्षेत्र में प्राकृतिक विषमता बनती जा रही है |
- प्रकृति ने जो स्थान जिस चीज के लिए निर्धारण किया उसमे हमारा हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है जिसके कारण भयंकर बाढ़, भयंकर बारिश, भूकम्प जैसे अनेक आ रहे है जिन स्थानों पर पहले जहा बड़े बड़े जंगल हुआ करते थे इंसानों ने उन जंगलो को काटकर अब शहर बसा रहे है जिसके कारण प्राकृतिक तन्त्र में विषमता भी आने लगी है जिसके कारण से अनेक दुष्प्रभाव देखने जाने लगे है|
जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु वैश्विक प्रयास
1. जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC)
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) जलवायु परिवर्तन से संबंधित वैज्ञानिक आकलन करने हेतु संयुक्त राष्ट्र का एक निकाय है। जिसमें 195 सदस्य देश हैं।
- इसे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) द्वारा 1988 में स्थापित किया गया था।
- इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन, इसके प्रभाव और भविष्य के संभावित जोखिमों के साथ-साथ अनुकूलन तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने हेतु नीति निर्माताओं को रणनीति बनाने के लिये नियमित वैज्ञानिक आकलन प्रदान करना है।
- IPCC आकलन सभी स्तरों पर सरकारों को वैज्ञानिक सूचनाएँ प्रदान करता है जिसका इस्तेमाल जलवायु के प्रति उदार नीति विकसित करने के लिये किया जा सकता है।
- IPCC आकलन जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय वार्ताओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
2 . संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC)
- यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसका उद्देश्य वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करना है।
- यह समझौता जून, 1992 के पृथ्वी सम्मेलन के दौरान किया गया था। विभिन्न देशों द्वारा इस समझौते पर हस्ताक्षर के बाद 21 मार्च, 1994 को इसे लागू किया गया।
- वर्ष 1995 से लगातार UNFCCC की वार्षिक बैठकों का आयोजन किया जाता है। इसके तहत ही वर्ष 1997 में बहुचर्चित क्योटो समझौता (Kyoto Protocol) हुआ और विकसित देशों (एनेक्स-1 में शामिल देश) द्वारा ग्रीनहाउस गैसों को नियंत्रित करने के लिये लक्ष्य तय किया गया। क्योटो प्रोटोकॉल के तहत 40 औद्योगिक देशों को अलग सूची एनेक्स-1 में रखा गया है।
- UNFCCC की वार्षिक बैठक को कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज़ (COP) के नाम से जाना जाता है।
3. पेरिस समझौता
- यदि कम शब्दों में कहा जाए तो पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
- वर्ष 2015 में 30 नवंबर से लेकर 11 दिसंबर तक 195 देशों की सरकारों के प्रतिनिधियों ने पेरिस में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये संभावित नए वैश्विक समझौते पर चर्चा की।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य के साथ संपन्न 32 पृष्ठों एवं 29 लेखों वाले पेरिस समझौते को ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिये एक ऐतिहासिक समझौते के रूप में मान्यता प्राप्त है।
जलवायु परिवर्तन और भारत के प्रयास
१. जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC)
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना का शुभारंभ वर्ष 2008 में किया गया था।
- इसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों को जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इससे मुकाबला करने के उपायों के बारे में जागरूक करना है।
- इसके अलावा भारत के राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा एसएपीसीसी (State Action Plans on Climate Change-SAPCC) पर राज्य कार्ययोजना तैयार की गई है जो NAPCC के उद्देश्यों के ही अनुरूप है।
२. अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance-ISA)
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन सौर ऊर्जा से संपन्न देशों का एक संधि आधारित अंतर-सरकारी संगठन (Treaty-Based International Intergovernmental Organization) है।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत भारत और फ्राँस ने 30 नवंबर, 2015 को पेरिस जलवायु सम्मेलन के दौरान की थी।
- इसका मुख्यालय गुरुग्राम (हरियाणा) में है।
- ISA के प्रमुख उद्देश्यों में वैश्विक स्तर पर 1000 गीगावाट से अधिक सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता प्राप्त करना और 2030 तक सौर ऊर्जा में निवेश के लिये लगभग $1000 बिलियन की राशि को जुटाना शामिल है।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की पहली बैठक का आयोजन नई दिल्ली में किया गया था।
न्यूज़ीलैंड से पूरी दुनिया को सीखना चाहिए - ज़ीरो कार्बन बिल
हाल ही में न्यूज़ीलैंड ने वर्ष 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को पूर्णतः समाप्त करने के उद्देश्य हेतु एक "ज़ीरो कार्बन" बिल पारित किया है। ध्यातव्य है कि न्यूज़ीलैंड ने पेरिस जलवायु समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को स्पष्ट करते हुए यह कदम उठाया है।
नए कानून में निर्धारित किया गया है कि आने वाले वर्षों में न्यूज़ीलैंड मीथेन को छोड़कर किसी भी अन्य ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन नहीं करेगा।
इस विधेयक के तहत सरकार को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के बारे में सलाह देने तथा ‘कार्बन बजट’ के निर्धारण हेतु एक स्वतंत्र जलवायु परिवर्तन आयोग की स्थापना करने का भी प्रावधान किया गया है।
इसके अलावा न्यूज़ीलैंड की सरकार ने यह भी वादा किया है कि वह अगले 10 वर्षों में 1 बिलियन वृक्ष लगाएगी और यह सुनिश्चित करेगी कि वर्ष 2035 तक बिजली ग्रिड पूरी तरह से अक्षय ऊर्जा से संचालित हो।
निष्कर्ष
जलवायु में होने वाले बदलावों के कारण पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, पिछले कुछ दशकों के दौरान मानवीय गतिविधियों ने इस बदलाव में तेजी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने और धरती पर स्वस्थ वातावरण बनाए रखने के लिए, धरती पर मानवीय गतिविधियों द्वारा होने वाले वाले प्रभावों को नियंत्रित किए जाने की आवश्यकता है।
और यही हाल चलता रहा तो भविष्य में ऐसे अनेक नये विनाशकारी अविष्कार देखने को मिलेगे जो सीधे सीधे मनुष्य को तो फायदा तो पहुचायेगे लेकिन प्रकृति पर सीधे सीधे नुकसान पंहुचा सकते है ऐसे में यदि जलवायु परिवर्तन के लिए हम सभी गम्भीर है तो वातावरण के लिए खतरनाक इन वस्तुओ का बहुत कम या नही उपयोग करना चाहिए
तो यदि समय रहते इन्सान जलवायु परिवर्तन के प्रति गम्भीर नही हुए तो आने वाले दिनों में प्रकृति द्वारा अनेक गम्भीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार भी रहना चाहिए
Source : Drishtiias, wikipedia
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