भारतीय वायु सेना के एएन -32 विमान ने पहली बार 10 फीसद जैव-जेट ईंधन के साथ भरी उड़ान
भारतीय वायु सेना के एएन -32 विमान ने शुक्रवार को 10 फीसदी भारतीय जैव-जेट ईंधन के साथ लेह हवाई अड्डे से उड़ान भरी। यह पहली बार था कि जब विमान के दोनों इंजन जैव-जेट स्वदेशी ईंधन द्वारा संचालित थे।
AN-32 aircraft - फोटो : ANI |
भारतीय वायु सेना
यह सफल परीक्षण उड़ान स्वदेशीकरण को प्रायोजित करते हुए नई तकनीक को अवशोषित करने के लिए IAF की क्षमताओं को प्रदर्शित करता है। इस ईंधन का उत्पादन करने की तकनीक को 2013 में CSIR-IIP द्वारा विकसित किया गया था, लेकिन देश में समवर्ती विमानन परीक्षण सुविधाओं की कमी के कारण व्यावसायिक उपयोग के लिए परीक्षण और प्रमाणित नहीं किया जा सका। 2018 में, IAF ने इस परियोजना को प्रायोजित किया और ईंधन परीक्षण की पूरी श्रृंखला के लिए अपने मानव और भौतिक संसाधनों को चैनलबद्ध किया। जैव-जेट ईंधन गैर-खाद्य 'ट्री बोर्न ऑयल्स ’ से उत्पन्न होता है , जो छत्तीसगढ़ राज्य के आदिवासी क्षेत्रों से उगाया और खरीदा जाता है। आईएएफ के प्रयास कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और कच्चे आयात पर भारत की निर्भरता में मदद करेंगे।
बता दें कि लेह समुद्र तल से 10,682 फीट की ऊंचाई पर है। यह सबसे कठिन परिचालन वाले हवाई क्षेत्रों में से एक है। लेह में विमान की लैंडिंग और टेक-ऑफ काफी चुनौतीपूर्ण होता है। यह अत्यधिक संवेदनशील मौसम के लिए जाना जाता है। बता दें कि 2018 में वायुसेना ने इस परीक्षण के लिए परियोजना तैयार की थी। अब पूरी तैयारी के बाद अंजाम तक पहुंचाने की योजना पर काम करना शुरू किया।
बता दें कि लेह समुद्र तल से 10,682 फीट की ऊंचाई पर है। यह सबसे कठिन परिचालन वाले हवाई क्षेत्रों में से एक है। लेह में विमान की लैंडिंग और टेक-ऑफ काफी चुनौतीपूर्ण होता है। यह अत्यधिक संवेदनशील मौसम के लिए जाना जाता है। बता दें कि 2018 में वायुसेना ने इस परीक्षण के लिए परियोजना तैयार की थी। अब पूरी तैयारी के बाद अंजाम तक पहुंचाने की योजना पर काम करना शुरू किया।
प्रयोग : चंडीगढ़ एयरबेस पर किया गया था परीक्षण
भारतीय वायुसेना की ओर से जारी किए गए बयान में कहा गया है कि विमान के लेह के लिए ऑपरेशन उड़ान भरने से पहले चंडीगढ़ एयरबेस पर AN-32 विमान का परीक्षण कर उसे परखा गया था।
इसके बाद विमान को उड़ान भरने की अनुमति दी गई थी। बता दें कि लेह समुद्र तल से 10,682 फीट की ऊंचाई पर है।
यहां के अस्थिर मौसम के कारण यहां से विमानों की उड़ान और लैंडिंग बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य होता है।
फायदा : जैव-जेट ईंधन के उपयोग से चल सकेंगे एयरो इंजन
रक्षा मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को जारी किए गए एक बयान में बताया गया कि घरेलू बायो-जेट ईंधन के प्रदर्शन को परखना ऑपरेशन के नजरिए से बहुत महत्वपूर्ण है।
यह उड़ान विषम परिस्थितियों में जैव-जेट ईंधन के उपयोग से एयरो-इंजन को चलाने की क्षमता साबित करती है।
इस प्रयोग को करने में विमान और सिस्टम परीक्षण प्रतिष्ठान बेंगलुरु और ऑपरेशन स्क्वाड्रन के पायलट शामिल थे।
उत्पादन : ऐसे होता है बायो-जेट ईंधन का उत्पादन
रक्षा मंत्रालय के अनुसार बायो-जेट ईंधन गैर-खाद्य ट्री बोर्न ऑयल्स से बनाया जाता है। यह देश के छत्तीसगढ़ राज्य के आदिवासी इलाकों में बहुतायत से मिलता है और सरकार द्वारा वहां खरीदा जाता है।
वायुसेना में इसके उपयोग से देश में कार्बन उत्सर्जन को कम करने तथा कच्चे तेल के आयात के लिए भारत की दूसरे देशों पर निर्भरता को कम करने में मदद मिलेगी।
इतना ही नहीं इससे सरकार का विमान संचालन पर खर्च भी कम होगा।
पहली उड़ान : स्पाइस जेट के विमान ने भरी थी पहली उड़ान
बायो-जेट ईंधन के उपयोग से देश में पहली उड़ान स्पाइस जेट कंपनी के बॉम्बार्डियर Q-400 विमान ने 28 अगस्त, 2018 को भरी थी।
इस उड़ान का संचालन देहरादून से नई दिल्ली अंतरराष्ट्री हवाई अड्डे तक किया गया था।
इस उड़ान के लिए 75 प्रतिशत एविएशन टर्बाइन फ्यूल (ATF) और 25 प्रतिशत मिश्रण वाले बायो-जेट ईंधन का उपयोग किया गया था।
उस उड़ान के साथ ही भारत ऐसा करने वाला पहला देश बना था।
SOURCE : ANI